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भाषण : बम्बईकी महिला-सभामें

मई ८, १९१९



प्यारी बहनो,

मेरी तबीयत ठीक नहीं है; इसलिए मैं बैठे-बैठे ही बोलूँगा । जो बहनें शिक्षित हैं उन्होंने स्वदेशी व्रत के सम्बन्धमें समाचारपत्रोंमें पढ़ा होगा । जबसे मैं दक्षिण आफ्रिका से आया हूँ, तबसे मैं जिस एक ही वस्तुके विषयमें कहता आया हूँ वह यही है । हिन्दुस्तानमें जिस हदतक पुरुष सांसारिक, धार्मिक और राजनैतिक मामलोंमें भाग लेते हैं, जबतक स्त्रियाँ उस हदतक भाग नहीं लेंगी तबतक हमें भारतके भाग्योदयके दर्शन नहीं हो सकेंगे। जिन्हें पक्षाघात हो जाता है वे लोग कुछ भी काम नहीं कर सकते। उसी तरह स्त्रियाँ पुरुषोंके कार्यमें भाग न लेंगी तो देश कंगाल ही रहेगा । जिस देशमें स्त्रियाँ अपने पुरुषोंके सुख-दुःखके बारेमें भी नहीं जानतीं उस देशकी क्या हालत हो सकती है ? मेरा [ आपसे ] सब-कुछ कह डालनेका मन होता है, लेकिन फुरसत न होनेके कारण में सारी बातें नहीं कह पाऊँगा । इसलिए, मैं यह चाहता हूँ कि आज मैं जिस विषयकी आपसे चर्चा कर रहा हूँ, उसमें आप पूरा-पूरा योगदान दें। मुझे इतना ही कहना है कि इस समय देशमें जो परिवर्तन हो रहे हैं उनमें स्त्रियोंको अपना अंशदान देना चाहिए । उसके लिए अक्षर ज्ञानकी आवश्यकता नहीं है । यह कहना गलत है कि अक्षर ज्ञानके बिना देशके कार्यमें भाग नहीं लिया जा सकता । स्त्रियाँ घरका काम-काज अच्छी तरह चला सकती हैं । मुझे खुद किसानों और बुनकरोंके बीच काम करना है । हम जितना उत्साह शिक्षित वर्ग में पैदा कर सकते हैं उससे कहीं अधिक उत्साह हम इस वर्गमें उत्पन्न कर सकते हैं। खेड़ा जिलेमें जब सत्याग्रह आन्दोलन हुआ तब उसमें पुरुषोंने जितना कार्य किया बहनोंने भी उतनी ही मदद दी । लेकिन यदि वे सहायता न देतीं, डर जाती अथवा पुरुषोंको रोक देतीं, तो हमारा क्या होता ?

मेरी ऐसी मान्यता है कि स्वदेशी व्रतमें भी जबतक स्त्रियोंकी सहायता प्राप्त न हो तबतक स्वदेशी व्रत पूरी तरहसे नहीं निभा सकता और उसमें केवल पुरुष सफलता प्राप्त नहीं कर सकेंगे। पुरुषोंका बच्चोंपर नियन्त्रण नहीं रहता । यह अधिकार स्त्रियों का है । बच्चोंकी परवरिश करना और उन्हें पहनाना-उढ़ाना माताओंके अधिकार हैं। इसलिए स्त्रियोंको स्वदेशीकी धुन लगनी चाहिए। जबतक उन्हें यह धुन नहीं लगती तबतक पुरुष इस व्रतका पालन नहीं कर सकेंगे । स्त्री गृहिणी है और राज्य करती है । उसमें यदि परिवर्तन न हो तो पुरुष क्या कर सकता है ? पुरुषोंके वस्त्रोंकी अपेक्षा स्त्रियोंके वस्त्रोंका मूल्य अधिक पड़ता है और सदा यही होगा। हिन्दुस्तानसे [ प्रतिवर्ष ] हमारे ६० करोड़ रुपये बाहर विदेशोंमें चले जाते हैं। रेशमी वस्त्रोंपर तीन-चार करोड़ रुपये और शेष ५६ करोड़ रुपये हम सूती वस्त्रोंके बदले दे डालते हैं । हिन्दुस्तानमें तीस