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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

तरह मिलता रहे, तुम पेड़पर पट्टी बाँधे बिना कभी बाहर न निकलो और सगे-सम्बन्धियोंकी बीमारीके समाचारोंसे भी बहुत अधिक चिन्तित न रह पाओ। लेकिन चूँकि तुम्हारी विवाहकी उम्र शायद निकल चुकी है और मैं खुद तुम्हारी देखभाल नहीं कर सकता, इसलिए मेरे लिए नाराज होना ही बाकी रह जाता है । किन्तु नाराज होनेसे तुम्हारे लिए प्रार्थना करना अच्छा है, और यही मैं करूँगा । अगर ईश्वरकी इच्छा हुई तो वह तुम्हें भला-चंगा रखेगा, ताकि तुम सशक्त रहकर उसके गुणगान कर सको ।

मेरे कामका ढर्रा ठीक बैठता जा रहा है और अब ऐसा नहीं लगता कि मैंने कोई नया काम हाथमें लिया है । सम्बन्धित फुटकर प्रश्नोंसे परेशानी तो जरूर होती है, परन्तु मैं अब उनकी चिन्ता करना छोड़ दूंगा । फिलहाल उनसे तत्काल निपटनेकी जरूरत भी सामने नहीं है । मेरे जीवनका ढंग, यह कभी रहा ही नहीं। किस कामका क्या परि- णाम हो सकता है इसकी तमाम तफसीलको ठोक-बजाकर देखना मैं पसन्द नहीं करता । मैं तो प्राप्त कर्मको हाथमें ले लेता हूँ और सो भी डरते-डरते । मैंने चम्पारन, खेड़ा या अहमदाबादमें सम्भावनाओंका हिसाब नहीं बैठाया था, और न १९१४ में युद्धके लिए अपनी सेवाएँ बिना शर्त अर्पित करते समय ही । मेरी समझमें तो मैंने किसी अन्य बातका नहीं, उसीकी इच्छाका अनुसरण किया था । वही मुझे घिरते हुए अन्धकारमें से रास्ता दिखाकर पार ले जायेगा ।

यह जानकर कि गुरुदेवने[१]खुद बच्चोंको पढ़ानेका काम हाथमें ले लिया है, मेरा हृदय आनन्दसे उमड़ रहा है। मेरे खयालसे यह काम उनके अमेरिका जानेसे कहीं अधिक महत्त्वका है। तुम भी उनके इस काममें हिस्सा लोगे, इससे भी मुझे उतना ही आनन्द होता है। ईश्वर तुम दोनोंको भला-चंगा रखे ।

बड़ोदादास[२]लाल मेरे प्रणाम कहना ।
सस्नेह,

तुम्हारा,
मोहन

[ अंग्रेजीसे ]
महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे ।
सौजन्य : नारायण देसाई
  1. रवीन्द्रनाथ ठाकुर।
  2. द्विजनाथ ठाकुर रवीन्द्रनाथ ठाकुरके सबसे बड़े भाई।