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पत्र : एनी बेसेंटको
तब तो मुझे उन सभीसे यही मालूम हुआ था कि आप सत्याग्रहका पूरा समर्थन करती हैं और आपकी ऐसी सलाह है कि यह आन्दोलन मेरे नेतृत्वमें चलाया जाये ।

किन्तु, आपके लेखोंको पढ़नेके बाद बड़े दुःखके साथ यह निष्कर्ष निकालना पड़ता है कि श्रीमती बेसेंट बिलकुल बदल गई हैं; अब वे वह पहलेवाली श्रीमती बेसेंट नहीं रह गई हैं, जिन्होंने समस्त मानवीय नियमोंकी चाहे वे सामाजिक रहे हों या राजनीतिक उपेक्षा करके सत्यकी खातिर संसारको चुनौती दी थी। अब आप अपनी ही शिक्षाकी ओरसे मुँह फेर लें और मुझपर "ऐसे प्रमुख नौजवानोंको, जो स्वभावसे बड़े ही नेक और विवेकशील हैं, अपनी गम्भीरतम प्रतिज्ञाएँ तोड़नेकी प्रेरणा देने" का आरोप लगायें, यह सोचकर सचमुच मन काँप उठता है । मैं यह आरोप स्वीकार करनेको तैयार नहीं हूँ, लेकिन मैं निश्चय ही हर आदमीको अपनी ऐसी सारी प्रतिज्ञाएँ तोड़ देनेकी सलाह दूंगा जो सत्यके विरुद्ध हों। आप जब कभी किसी व्यक्ति और उसकी अन्तरात्माके बीच कोई बाहरी आदमी - चाहे उसकी आध्यात्मिक उपलब्धि कितनी ही ऊँची क्यों न लगती हो -ला खड़ा करती हैं, तभी आप उसे समस्त मानवीय गरिमासे वंचित कर देती हैं। आपके जो अनुयायी आपके निर्देशोंको भी एक किनारे रखकर अपनी अन्तरात्माके आदेशका पालन करते हैं वे उसी प्रकार आपके वफादार हैं जिस प्रकार प्रह्लाद अपने पिताका था ।

किन्तु, मैं आपसे बहस करना नहीं चाहता । मैं तो उन्हीं श्रीमती बेसेंटको याद रखूँगा जिनको मैं अपनी युवावस्थासे ही निर्भीकता, साहस और सत्यकी जीवन्त प्रतिमूर्ति मानता आया हूँ ।

आपने अपना पत्र बड़े दुःखके साथ लिखा है । लेकिन आप नहीं जानतीं कि जो लोग भारतके प्रति आपकी सेवाओंसे परिचित हैं और उन्हींके कारण आपको प्यार करते हैं, उन्हें आप इसकी तुलनामें कितना अधिक दुःख पहुँचा रही हैं ।

यदि आप मुझसे मिलना चाहें तो स्वागत है। आज तो समय नहीं है । १० बजे रातके बाद ही फुरसत मिलेगी। कल सुबह खाली हूँ ।

हृदयसे आपका,

हस्तलिखित दफ्तरी अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ६६०५) की फोटो - नकलसे ।