पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 15.pdf/३५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

३. पत्र : ओ० एस० घाटेको

अगस्त ६, १९१८

प्रिय श्री घाटे,[१]

माताजी[२]}}और अपने मित्रोंको विश्वास दिला दीजिए कि जल्द ही रिहाई कराने- के लिए मैं एक भी उपाय बाकी नहीं रखूंगा; किन्तु रिहाई हर तरह सम्मानपूर्ण होनी चाहिए। मौलाना मुहम्मद अलीकी[३]}} बीमारीका सारा हाल मुझे मालूम है । इसी कारण मैं चाहता हूँ कि रिहाई जल्दी हो जाये, चाहे इसी बिनापर हो । परन्तु इस हद तक अर्जियाँ देते रहना, जिससे हमारा सम्मान न रहे, मुझे पसन्द नहीं । भारत सरकारके गृह-मन्त्री । मैं मानकर चला हूँ कि सर विलियम विन्सेंटके[४]}} साथ मेरे पत्र-व्यवहारकी नकलें शुएबकी[५] }} मारफत उनको यथासमय मिल जायेंगी। सर विलियम उनकी जांचके लिए न्यायाधिकरण नियुक्त करनेकी बात करते हैं । उसका बहिष्कार करनेका मेरा विचार नहीं है। सारे देशमें एक बड़ा आन्दोलन खड़ा कर देनेसे पहले मैं सरकारको उचित और शोभास्पद तरीकेसे अपना कदम वापस लेनेका पूरा अवसर देना चाहता हूँ। मैं आशा रखता हूँ कि अगर अली भाइयोंको बुलाया गया, तो वे समितिके सामने उपस्थित होंगे । लेकिन अगर आन्दोलन चलाना आवश्यक ही हो जायेगा, तो उसे शुरू करनेसे पहले मैं माताजीसे जरूर मिल लूंगा । मेरा खयाल है कि वे यही चाहती हैं।...[६]}}

[ अंग्रेजीसे ]
महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे ।
सौजन्य : नारायण देसाई


  1. १. अलो बन्धुओंके वकील ।
  2. मुहम्मद अली और शौकत अलीकी माताजी ।
  3. शौकत अलीके छोटे भाई और साप्ताहिक कामरेडके सम्पादक । सरकारने प्रथम विश्वयुद्ध शुरू होनेके तुरन्त बाद दोनों भाइयोंको नजरबन्द कर लिया था ।
  4. भारत सरकारके गृह-मन्त्री ।
  5. शुएब कुरैशी; न्यू एराके सम्पादक ।
  6. यहाँ महादेव देसाईने कुछ शब्द छोड़ दिये हैं ।