पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 15.pdf/३४७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३१७
पत्र: एफ० सी० ग्रिफिथको

२. इस व्रतपर हस्ताक्षर करनेवालोंके पास जो विदेशी कपड़े हों, उन्हें नष्ट करनेका सुझाव बिलकुल छोड़ दिया गया है, क्योंकि इस सुझावके ऐसे गलत अर्थ लगाये जा सकते हैं जिससे यूरोपीयोंके प्रति दुर्भावना पैदा हो सकती है या बढ़ सकती है, जब कि वर्तमान स्वदेशी आन्दोलनके संयोजकोंके लिए किसीके प्रति दुर्भावना की कल्पना भी असम्भव है । लेकिन यह व्रत हस्ताक्षरकर्त्ताको, व्रत लेते समय यदि उसके पास विदेशी कपड़ा हो तो उसे आगे पहननेकी मनाही करता है ।

३. स्वदेशी व्रत लेनेवाले मुसलमान, पारसी, ईसाई और यहूदी लोगोंको ऐसा विदेशी वस्त्र धारण कर सकनेकी अनुमति है जिसका कोई धार्मिक महत्त्व हो ।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, १७-५-१९१९

२८१. पत्र : एफ० सी० ग्रिफिथको

लैबर्नम रोड

बम्बई

मई १४, १९१९
प्रिय श्री ग्रिफिथ,

'मुस्तफा कमाल पाशाका जीवन-चरित्र' के विक्रेताका नाम सूचित करनेके लिए मैं आपका आभारी हूँ। देखता हूँ कि यह पुस्तक[१]वर्जित पुस्तकोंमें से किसीका पुनर्मुद्रित संस्करण नहीं है। इसे भूलसे मुस्तफा कमाल पाशाका भाषण समझकर पुनर्मुद्रित किया गया है और भाषण वर्जित पुस्तकोंकी सूचीमें है। इसलिए मैं उक्त पुस्तककी बिक्रीको रोकनेके लिए कोई भी कदम नहीं उठा रहा हूँ; हाँ, यदि आप इसके प्रतिकूल कुछ कहना चाहें तो बात अलग है। उस पुस्तककी एक प्रति आपके अवलोकनार्थ भेज रहा हूँ। मेरा अनुमान है कि आप मेरी इस रायसे सहमत होंगे कि पुस्तक बिलकुल निर्दोष है। मैं यह भी कहना चाहता हूँ कि मेरी जिन-जिन पुस्तकोंपर रोक लग चुकी है उनके संदर्भ में पहली मुलाकातके अवसरपर आपसे बातचीत होनेके बाद मैंने कानूनी स्थितिकी जाँच फिरसे कराई थी। तब मुझे यह मालूम पड़ा कि सरकारके कानूनी सलाहकारोंकी राय यह थी कि उक्त पुनर्मुद्रित पुस्तकें जब्तीसे सम्बन्धित आज्ञाओंके अन्तर्गत नहीं आतीं। उनकी यह राय तत्सम्बन्धी मेरी रायके मुकाबलेमें अधिक सही थी। चूँकि हम लोग इन पुस्तकोंकी बिक्री सत्याग्रह चलानेकी खातिर शुरू कर चुके थे, इसलिए मुझे ऐसा लगा कि जबतक जनतामें फैली हुई रोषकी लहर समाप्त नहीं होती तबतक इस किताबकी बिक्रीको न्यायोचित ठहराने के लिए जनताके समक्ष लम्बी-चौड़ी सफाई पेश न करना ही हितकर होगा ।

  1. १. देखिए “वक्तव्य : सत्याग्रह सभाकी ओरसे", ७-४-१९१९ ।