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४. पत्र : देवको

अगस्त ६, १९९८

प्रिय श्री देव,[१]

आपसी फूटके खतरेसे सम्बन्धित आपका प्रस्ताव[२] मुझे मिल गया है । मेरा यह निश्चित विचार है कि हम अस्वाभाविक और यान्त्रिक एकताको जरूरतसे ज्यादा महत्त्व दे रहे हैं। अगर हममें दो अलग-अलग निश्चित दल हों और राजनैतिक मामलोंमें वे साफ तौरपर अलग-अलग राय रखते हों, तो उनके दो बिलकुल अलग-अलग मंच भी क्यों न हों ? हर एक दल अपनी-अपनी नीति देशके सामने पेश कर सकता है। लोगोंको उससे लाभ ही होगा । एकसे दूसरा अधिक बलवान् हो जाये तो उससे स्वराज्यके आनेमें कोई बाधा नहीं पड़ेगी। यदि एक भी दल कमजोर हो और अपने उद्देश्यकी दिशा में पूरी तरह उन्मुख न हुआ हो तो हमें बड़ा कष्ट उठाना पड़ेगा और वह उचित ही होगा । इसका उपाय यही है कि दोनों पक्ष बलवान् और दृढ़ बनें। आजकल हम लोगों में बहुत पाखण्ड फैला हुआ है। इससे लोग भ्रष्ट बन जाते हैं। दलोंमें दिखावटी सुलह से कोई धोखे में नहीं आ सकता ।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

[ अंग्रेजीसे ]
महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे ।
सौजन्य : नारायण देसाई

५. पत्र : सन्तोक गांधीको

[ सूरत ]
अगस्त ६, १९१८

चि० सन्तोक,[३]

रुखी* बार-बार क्यों बीमार पड़ती रहती है ? मैं जानता हूँ, वह जन्मसे ही दुर्बल है । किन्तु इसका अर्थ यह हुआ कि उसकी सार-सँभाल ज्यादा रखनी चाहिए। बच्चोंका पालन-पोषण करना एक बड़ी कला है। इसमें माता-पिताको कठिन व्रतोंका पालन करना पड़ता है। मैं चाहता हूँ कि यह सब करके भी तुम बच्चोंको अच्छा बनाओ । में कह


  1. भारत सेवक समाज [ सवेंट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी ] के मन्त्री डॉ० एच० एस० देवके भाई ।
  2. धुलियामें स्वीकृत कांग्रेसकी फूटकी भर्त्सनाका प्रस्ताव ।
  3. मगनलाल गांधीकी पत्नी ।