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२८८. पत्र : सूरतके सत्याग्रहियोंको



बम्बई
मई २०, १९१९

आपका पत्र भटकता हुआ मेरे हाथ तो आज ही आया है । मैं समझता हूँ कि [ आपके लिए ] मेरे हस्ताक्षरोंका लोभ रखना अनुचित है । मेरी शारीरिक स्थिति ऐसी है कि मैं सब पत्रोंपर दस्तखत नहीं कर सकता और सब पत्र लिखवा भी नहीं सकता ।

जबतक हिन्दुस्तान सत्याग्रह के सच्चे स्वरूपको नहीं समझता, तबतक आपके द्वारा उठाई हुई शंकाएँ उठती ही रहेंगी और आपको धीरज भी रखना ही पड़ेगा ।

सत्याग्रह शुरू होनेके बाद ध्येय तक पहुँचकर ही समाप्त होता है। कितनी ही बार उसके समाप्त होनेका आभास होता है, परन्तु वास्तवमें तो वह बन्द होता ही नहीं। जिस समय सत्याग्रहके दुराग्रह में परिवर्तित हो जानेकी सम्भावना हो, उस समय सत्याग्रह बन्द कर देनेपर ही सच्चा सत्याग्रह चालू होता है । सत्याग्रह ऐसी सूक्ष्म वस्तु है कि बार- बार संशोधन और अनुभव करनेपर ही कुछ अंशोंमें उसका ज्ञान होता है । मैं इस वक्त जैसे हालात देख रहा हूँ, उनके आधारपर कानून-भंगरूपी सत्याग्रहके जुलाईमें शुरू होनेकी सम्भावना है। इससे पहले भी शुरू होनेके अवसर आ सकते हैं।

सत्याग्रहके कुछ स्वरूपोंको बार-बार मुलतवी करना पड़े, यह सम्भव है । उपवासादि धार्मिक क्रियाओंमें कितना बल है, आपको यह बात समझाना, ऐसा लगता है कि किसी हदतक अशक्य-सा है क्योंकि उपवासादि तो आप बरसोंसे करते ही आये हैं । ये आपने किये होंगे । किन्तु उनके पीछे यदि सत्याग्रहकी भावना होती, तो जो-कुछ आपको लिखना पड़ा है, उसे लिखनेकी आवश्यकता ही न रहती । आपने पहले जो उपवास किये हों, उनमें और हॉर्निमैनके लिए रविवारको जो उपवास किया, उसमें अगर आपको कुछ भी फर्क न दिखाई दिया हो तो मुझे कहना चाहिए कि आपने अपने-आपको धोखा दिया है। मेरा प्रबल विश्वास है कि हममें जिस हदतक सत्याग्रहकी न्यूनता है, उस हदतक हमारी लड़ाई लम्बी होती जाती है। वैराग्यहीन त्याग, त्याग नहीं है । आपमें से जिन्होंने नौकरी वगैरह सब कुछ खो दिया है, उन्होंने अगर खोनेमें कुछ पाया नहीं, तो वह खोना निरर्थक है। जो नौकरी छोड़े बिना रह ही नहीं सकते हों, उनके नौकरी छोड़नेको ही नौकरी छोड़ना कहा जा सकता है। [ नौकरी] छोड़नेमें दुःख होनेके बदले रस आना चाहिए था। मैं देख रहा हूँ कि छोड़नेवालोंको वह नहीं आया । इसीलिए आप अपनी दशा त्रिशंकु जैसी मान रहे हैं ।

सत्याग्रहका मौका देनेवाला मैं कौन ? सत्याग्रही सदा ही स्वतन्त्र हैं । मुझसे आप सलाह-मशविरा कर सकते हैं । यह सही है कि जहाँ सामूहिक सत्याग्रह हो रहा हो, वहाँ किसी एक व्यक्तिके अधीन रहकर काम करना चाहिए। किन्तु सत्याग्रही बन जानेके बाद सत्याग्रह करनेका अवसर तो सबको सदा अपने-आप मिलता ही रहता है। जो शंका-