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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

शायद आपको यह मालूम नहीं होगा कि जो गोपनीय पत्र मैंने अभी हालमें वाइसराय तथा बम्बईके गवर्नरको लिखे हैं उनमें मैंने निश्चयपूर्वक मुस्लिम प्रश्नको उठाया है, और उसे खिलाफत तथा पवित्र स्थानोंतक ही सीमित रखा है । कृपया अमन साहबसे मेरा नमस्कार कहें और चिरंजीव बच्चोंसे - मैं उनके नाम भूल गया हूँ - कहें कि मुझे पहलेकी भाँति पत्र लिखा करें।

हृदयसे आपका,

मूल अंग्रेजी पत्रकी प्रतिलिपि (एस० एन० ६६२२ ) की फोटो नकलसे ।

२९४. पत्र : एन० पी० कॉवीकी

[ बम्बई]
मई २५, १९१९

प्रिय श्री कॉवी,

मुझे मालूम हुआ है कि काठियावाड़के कोई श्री मणिलाल यादवजी व्यास और वहींके डॉक्टर पोपटलालको, जो कि कराचीमें रहते थे, १८६४ के अधिनियम ३के अन्तर्गत ब्रिटिश भारत छोड़कर चले जानेका हुक्म मिला है, क्योंकि उस अधिनियमकी रूसे वे विदेशी माने गये हैं । इस हुक्मके परिणामस्वरूप उन्होंने सिन्ध छोड़ दिया है और इस समय वे काठियावाड़में हैं । मेरी रायमें देशी रियासतोंकी प्रजाको कराचीसे निर्वासित करनेके लिए उन्हें 'विदेशी' कहना कराचीके स्थानीय अधिकारियोंकी ज्यादती है । १८६४ के अधिनियम ३, खण्ड १ के संशोधनको पढ़नेपर कानूनकी दृष्टिसे मेरी बातकी पुष्टि होती है। मुझे ऐसा लगता है कि सिन्धके अधिकारियोंको इस अधिनियममें हाल ही में किये गये संशोधनका पता न था । मैं देखता हूँ कि वह अधिनियम १९१४ में इस प्रकार संशोधित किया गया था:

१८६४ के फॉरेनर्स ऐक्टके खण्ड १में, "विलियम चतुर्थके अध्याय
८५, खण्ड ८१ के कानून ३ और ४के निहित अर्थमें साम्राज्ञीका देशजात प्रजाजन न हो और न ब्रिटिश भारतका निवासी", के स्थानपर निम्नलिखित शब्द होंगे :
"(क) जो ब्रिटिश नेशनैलिटी ऐंड स्टेट्स ऑफ एलियन्स एक्ट,[१]१९१४" के खण्ड १के उपखण्ड १ और २में दी गई परिभाषाके अनुसार देशजात ब्रिटिश प्रजाजन न हो, या
(ख) जिसे ब्रिटिश भारतमें इस समय प्रचलित किसी भी कानूनके अन्त- गंत ब्रिटिश प्रजाजनके रूपमें नागरिकताका प्रमाणपत्र न मिला हो;
किन्तु यदि कोई ब्रिटिश प्रजाजन ब्रिटिश भारतमें फिलहाल प्रचलित किसी भी कानूनके अन्तर्गत ब्रिटिश प्रजा कहलानेका अधिकार खो देता है, विदेशी माना जायगा ।"
 
  1. १. अन्य देशीयोंके ब्रिटिश राष्ट्रिकत्व और दर्जेसे सम्बन्धित अधिनियम ।