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पत्र : डॉ० प्राणजीवन मेहताको

चुका हूँ कि यदि तुम्हें हल्दीके अभाव के कारण दोष दिखाई देता हो, तो तुम खुराकमें हल्दीका उपयोग कर सकती हो । चाहो तो अकेली रुखीके लिए हल्दी डालकर भोजन बनाओ। ऐसा करके भी यदि उसका स्वास्थ्य सुधार सको, तो हम दूसरोंको भी हल्दी देंगे। मेरी इच्छा है कि अगर तुम भोजनमें हल्दीके सिवा कुछ और भी शुरू करके बच्चोंके स्वास्थ्यको सुधार सको, तो सुधारो । मेरा अपना यह खयाल है कि रुखी जबतक बीमार नहीं पड़ जाती तबतक गरिष्ठ चीजें खाती रहती है। इससे उसके पेटपर अधिक बोझ पड़ता है और वह बीमार हो जाती है । वह अच्छी हो जाये, तब उसे मुख्यत: दूध, चावल और शाकपर रखना, इससे सम्भवतः वह पूरी तरह ठीक हो जायेगी । मेरी मान्यता तो यह है कि अभी कुछ समय तक वह रोटी नहीं पचा सकेगी, फिर तुम्हें जो अनुभव हुआ हो, सो ठीक है । मेरी तो यह आकांक्षा है कि तुम किसी भी उपायसे उसके शरीरको वज्रके समान सुदृढ़ बना दो ।

बापूके आशीर्वाद

[ गुजरातीसे ]

महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ४

६. पत्र : डॉ० प्राणजीवन मेहताको

अगस्त ६, १९१८

भाईश्री प्राणजीवन,[१]

आपका चेचकके बारेमें लिखा लेख आज पढ़ना शुरू किया। अभी कुछ पढ़ना बाकी है । लेख बहुत लम्बा है । उसमें एक ही बात बार-बार आती है। सच पूछा जाये, तो यह लेख संदर्भसे बाहर भी समझा जा सकता है। इतना होनेपर भी आपने लेखपर खूब मेहनत की है और वह महत्त्वपूर्ण है । चेचकके टीकेके सम्बन्धमें अन्धविश्वासपूर्ण आग्रहके कारण कितने बच्चोंकी बलि दी जाती होगी, इसका आपने एक अच्छा नमूना पेश किया है । किन्तु आप इससे भी अधिक अच्छा उदाहरण दे सकते थे। शीतलाकी एक देवी मर गई है और उसकी जगह दूसरी परन्तु भयंकर देवीने ले ली है । आपके लेखको पुस्तकाकार छपवाने और प्रत्येक नगरपालिकामें बाँटनेकी जरूरत है। यदि आप इस लेखको अधिक लोकोपयोगी बनानेके खयालसे संक्षिप्त कर दें या इसके साथ संक्षेपमें एक दूसरा लेख लिख दें और मुझे उसको छपवानेकी इजाजत दे दें तो मेरी इच्छा उसका प्रचार करनेकी है। यदि आप एक छोटा स्वतन्त्र गुजराती लेख लिखें, तो हम


  1. डॉ० प्राणजीवन मेहता; एम० डी०, बार-एट-ला और जौहरी; उनका और गांधीजीका साथ उसी समयसे शुरू हुआ जब विद्यार्थीके रूपमें गांधीजीके लन्दन पहुँचनेपर उन्होंने उनका स्वागत किया था । फीनिक्सकी स्थापनाके समय से लेकर अपनी मृत्यु-पर्यंन्त (सन् १९३३) वे गांधीजीके कार्योंमें आर्थिक सहायता देते रहे ।

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