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२९६. पत्र : मगनलाल गांधीको



सूरत
मई २६, १९१९

चि० मगनलाल,

तुम्हें छोड़नेके बाद मेरे मनमें बुनाईके कामके सम्बन्धमें बहुतसे विचार आये हैं। मुझे लगता है जनताकी संयमकी प्रवृत्तिमें यदि हम चार कदम आगे चलते रहें तभी हम अपने जीवनको शोभा प्रदान कर सकते हैं। शुद्ध स्वदेशी व्रतका[१]पालन करनेमें प्रजाको हमारी सेवाओंकी ज्यादा जरूरत नहीं होगी। कारण जिन्होंने व्रत लिया है वे जैसे-तैसे देशी मिलोंका सूत लेकर, और उसे बुनवाकर, अपना गुजारा कर लेंगे । लेकिन शुद्ध स्वदेशी व्रतका जो आदर्श रूप है इसके पालनमें तो फिलहाल केवल आश्रम ही उनकी मदद कर सकता है। इसलिये [ जनतासे ] पहले व्रतका पालन करवानेकी ओर हमारा प्रयत्न कम होना चाहिए। लेकिन विशुद्ध स्वदेशीके पालनमें बहुत सारे स्त्री-पुरुष जल्दी सफल हो सकें, इसके लिए हमें भगीरथ प्रयत्न करना होगा और उस प्रयत्नकी दिशामें पहला कदम तो यह है कि हमें सूत कातना और बुनना शुरू कर देना चाहिए। सन्तोक न जा सके तो भले दुर्गा ही अकेली जाये । वह भी यदि न जाये तो किसी पुरुषको भेजो। तुम्हें बिना विलम्बके बीजापुर पहुँचना ही चाहिए । जगन्नाथ और छोटालालको केवल बुनाईके कामपर ही लगाना चाहिए । भुंवरजीके साथ सलाह-मशविरा करके रसोईके कामकी व्यवस्था करो। गोकीबेनको लिखो । चाहे जो मरजी करो लेकिन जगन्नाथ और छोटालालको किसी अन्य काममें लगाना पाप समझो । आश्रमके लिये कुछ मँगवाना हो तो उसके लिए रेवाशंकर अथवा किसी औरको लगाओ; उनसे कुछ भूल हो तो सहन करो। लेकिन जो काम एक पाईसे हो सकता हो उसपर रुपया मत खर्च करो। इमाम साहबकी तबीयत ठीक हो जाये तो [ कुछ हदतक ] उन्हें भी बुनाईके काममें लगाना । जब तुम सूत कातना आरम्भ करोगे तब सबकी सेवाओंका आसानीसे उपयोग किया जा सकेगा। तुम भी अपने समयका अधिकांश इस शुद्ध स्वदेशीका विस्तार करनेके विचारमें और उसके अनुरूप कार्य करनेमें व्यतीत करो ।

बापूके आशीर्वाद

मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ५७७४) से ।

सौजन्य : राधाबेन चौधरी

 
  1. १. शुद्ध स्वदेशी व्रतका अर्थ तो यही था कि हाथ-कते और हाथ-चुने कपड़े का उपयोग किया जाये किन्तु यह मानकर कि ऐसा कपड़ा पर्याप्त मात्रामें मिलना संभव नहीं होगा शुद्ध स्वदेशी व्रतकी प्रतिज्ञा ऐसी रखी थी कि उसमें देशी मिलोंके कपड़े का निषेध नहीं होता था । गांधीजीका यह वाक्य इसी बातको ध्यानमें रखकर लिखा गया है।