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२९७. भाषण : महिलाओंकी सभा में

सूरत
मई २६, १९१९

बहनो,

आप मेहरबानी करके मुझे क्षमा करेंगी कि मैं खड़ा होकर भाषण नहीं दे पाऊँगा । मुझमें इतनी शक्ति नहीं है कि मैं खड़ा होकर बोल सकूँ । खड़ा होता हूँ तो सारा शरीर काँपता है, इसलिए मुझे आपसे जो दो शब्द कहने हैं वे मैं बैठे-बैठे ही कहूँगा । आप सबका दर्शन पाकर मैं अपनेको भाग्यशाली मानता हूँ । यह समय सिर्फ बात करते हुए चुपचाप बैठे रहनेका नहीं है । हिन्दुस्तानके लिए यह ऐसा समय है जब प्रत्येक स्त्री-पुरुषको जो कार्य आता है सो अच्छी तरह किये बिना छुटकारा नहीं है। भाषण देना, गीत गाना और तरह-तरहके नारे लगाना, यह सब आवश्यक है; लेकिन वह सिर्फ इसलिए कि हम मुख्य कार्यके प्रति सतर्क रहें। जब हम मुख्य कार्यको जान गये हैं, तब यदि हम केवल बोलकर अथवा सुनकर सन्तोष प्राप्त करके बैठ रहेंगे तो अधोगतिको प्राप्त होंगे, इसमें मुझे तनिक भी सन्देह नहीं है। फिलहाल तो हमें चुपचाप काम करना चाहिए; अगर बोलना है तो हमारा काम ही बोले । समस्त हिन्दुस्तानके लोगोंके सम्मुख जब मैंने सत्याग्रहका कार्यक्रम रखा तब मुझे लोगोंके सच्चे स्वरूपकी खबर न थी, इस कारण आज उसने दूसरा ही रूप धारण कर लिया है। मैं सबको सत्याग्रहका अर्थ बतलाना चाहता हूँ । सत्याग्रह दो तरहसे किया जा सकता है, लेकिन उसका मन्त्र तो एक ही है और वह यह कि हम सत्यको इतनी दृढ़तासे पकड़े रखें कि भले ही हमारे हाथ टूट जायें लेकिन हम उसे न छोड़ें। हम इस मन्त्रको अपने अन्तःकरणमें इस सीमा तक अंकित कर लें कि उसके अलावा मनमें किसी और वस्तुका विचार आये ही नहीं। जिन बहनोंने सत्याग्रहका अर्थ विनयपूर्वक सरकारी कानूनको तोड़ना ही समझा है, वे उसके अर्थको नहीं समझ सकीं हैं। सत्यकी खातिर कई बार सरकारी कानूनोंको भंग भी करना पड़ता है। ऐसा अवसर रौलट विधेयकके समय आया था । उस समय मैंने बताया था कि कानून कौन भंग कर सकता है और कब कर सकता है, इसपर लोगोंको विचार करना चाहिए। लेकिन लोग उस बातको नहीं समझे । वैसे भाइयोंकी अपेक्षा बहनोंने उसे अधिक समझा । अगर कोई कहे कि बहनें और कर भी क्या सकती हैं, तो मैं ऐसा कहनेवालोंकी परवाह नहीं करूँगा । पुरुषकी अपेक्षा स्त्रीजातिको अधिक सहना पड़ता है । अधिकार तो दोनोंके एक समान हैं। मैं स्वयं तो यहाँतक मानता हूँ कि पुरुषोंकी बनिस्बत स्त्रियोंके पास कष्ट सहन करनेका एक अधिकार ज्यादा है । दुनियामें स्त्रियोंके समान पुरुषोंने सहन नहीं किया। स्त्रियोंने नम्रताका जितना परिचय दिया है उतना पुरुषोंने नहीं दिया। किन्तु इस समय तो में इतना ही कहना चाहता हूँ कि रौलट