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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


विधेयकसे सम्बन्धित सत्याग्रह बन्द नहीं हुआ है । [ सत्याग्रह प्रतिज्ञापर] हस्ताक्षर करनेवालोंकी संख्या सूरत अथवा दूसरे स्थानोंमें कम है लेकिन लोगोंने उसका नारा पकड़ लिया है और इसीसे कुछ कसर आ गई । यह नारा जिस हदतक [ वातावरणमें] व्याप्त हो गया उस हदतक उसकी परीक्षा नहीं हुई । फिर भी जिस व्यक्तिने वह प्रतिज्ञा ली है, वह इसे समझा है या नहीं, वह इस प्रतिज्ञासे मुक्त नहीं हो सकता । कानून कब तोड़ा जा सकता है और किस समय सरकारी कानूनोंका पालन करनेमें सत्याग्रह है, इनपर भी हमें विचार करना चाहिए । इस समय तो हम इन दोनों में से एकको भी नहीं समझते । परिस्थितिके अनुसार राजा अथवा प्रजा दोनोंके विरुद्ध सत्याग्रह किया जाना चाहिए । जिस समय देशमें सत्याग्रह चल रहा हो उस समय कोई भी खून-खराबी न करे, इस कथनका मजाक नहीं उड़ाया जा सकता । लोग पूछते हैं कि सारा देश इस बातको कैसे मान सकता है। मैं कहता हूँ मान सकता है। जनता सत्याग्रहपर ऐसी श्रद्धा रखती हो अथवा न रखती हो, तो भी किसी व्यक्तिकी जान अथवा मालको हानि न पहुँचाना-सत्याग्रहका मूल सिद्धान्त है । हिन्दुस्ताने इस सिद्धान्तको समझ गया है। यदि एकाध जगहके लोग इसे नहीं समझ सके हैं तो हमें चाहिए कि हम उन भूले हुओंको फिरसे समझायें । इस समय हम जनताको बता रहे हैं कि यदि किसी भी व्यक्तिके जान-मालको नुकसान न पहुँचाने में लोगों की श्रद्धा दृढ़ नहीं हो जाती तो हम सत्याग्रहको आरम्भ नहीं कर सकते। मैं ज्यादा गहराईमें तो नहीं जाऊँगा, लेकिन फिर कहूँगा कि किसीके मनमें यह सन्देह नहीं होना चाहिए कि सत्याग्रह तो बन्द हो गया है । सत्याग्रह शुरू होनेके बाद बन्द हो ही नहीं सकता। मैं ये शब्द सोद्देश्य कह रहा हूँ । सत्याग्रह बन्द नहीं हुआ है, यह तो, जिस समय सरकार रौलट विधेयकोंको वापस ले लेगी, तभी बन्द हो सकता है ।

इसके बाद मुझे एक और बात आपसे करनी है । यह सत्याग्रह जितनी ही महत्त्वपूर्ण है । यह सत्याग्रहसे उत्पन्न होती है लेकिन रौलट विधेयकोंसे नहीं । जब सत्याग्रह चालू होता है तब स्त्री और पुरुष सत्यके सम्बन्धमें विचार करने लगते हैं। यदि हमने सत्यका तनिक भी पालन किया हो तो हमें अपनी तथा अपने आसपासकी अपूर्णताको दूर करनेकी बात सूझती है। ऐसी एक अपूर्णता स्वदेशी [ के सिद्धान्त ] को भंग करनेकी है । स्वदेशी व्रतका क्या मतलब हुआ ? कौन इसका पालन करे ? इसका अर्थ यह हुआ कि हमें हिन्दुस्तान से बाहरके देशोंमें बनी हुई वस्तुओंका तबतक उपयोग नहीं करना चाहिए जबतक वे अच्छी-बुरी मगर यहींकी बनी मिलती हैं। जो विदेशी वस्तुएँ हमारी दैनिक आवश्यकताके लिए जरूरी न हों उनका तो हमें त्याग ही कर देना चाहिए। आवश्यक वस्तुएँ, जैसे यदि फसल अच्छी न हुई हो तो हम अनाजका आयात कर सकते हैं। लाज ढाँकनेके लिए आवश्यक पहननेके वस्त्र न मिलें तो उस हालत में हम, निःसन्देह, उन्हें भी बाहरसे मँगवा सकते हैं । मगर हिन्दुस्तान ऐसा देश है कि जहाँ जरूरतकी सब वस्तुएँ मिलती हैं। जिसने दाँत दिये हैं वह खानेको भी देगा । हिन्दुस्तानमें हमारी सब जरूरतें पूरी होने योग्य वस्तुएँ मिल सकती हैं। गुजरात प्रदेशकी भूमि इतनी उपजाऊ है कि वहाँ अकाल कभी नहीं पड़ता । यहाँ थोड़ी ही कोशिशसे