पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 15.pdf/३६३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३३३
भाषण : महिलाओं की सभा में

अनाज उत्पन्न किया जा सकता है, इस कारण हम भुखमरीकी पूरी कल्पना नहीं कर सकते ; लेकिन गुजरात ही हिन्दुस्तान नहीं है। हिन्दुस्तान-भरमें बहुत-से स्त्री-पुरुषोंको एक ही वक्त खानेको मिलता है और जो मिलता है वह भी दाल-भात तथा घीके साथ सम्पूर्ण भोजन नहीं होता और-तो-और उसके साथ ढंगके मसाले आदि भी नहीं, सिर्फ मैला-सा नमक ही उन्हें मिल पाता है। हिन्दुस्तानमें एक समय ऐसा था कि जब भुखमरी नहीं होती थी। हमारे महान् नेता सर शंकरन नायरने[१]एक लेखमें लिखा है कि एक सौ वर्ष पहले इस देशमें आजके समान भुखमरी नहीं थी । वह दशा तो अब हुई है ।

इसका कारण हमारा स्वदेशीके व्रतको न पालना ही है । हमारे अपने मजदूर और कारीगर भूखे मरते हैं और हम विदेशी वस्तुएँ मँगवाते हैं। इस पापका फल भुखमरी न हो तो और क्या हो ? इस पापको दूर करनेके लिए मैंने हिन्दुस्तानकी जनताके सम्मुख स्वदेशी व्रत रखा है । यह कोई ऐसा कठिन व्रत नहीं है जिसका पालन किया ही नहीं जा सकता । हिन्दुस्तान में अनाजके बाद बड़ीसे-बड़ी जरूरतकी चीज कपड़ा है। इसके लिए गतवर्ष हमने साठ करोड़ रुपया विदेशोंको भेज दिया। यदि इसपर विचार करें तो बड़ी शर्मकी बात है । अहमदाबादके पास बावला नामका एक गाँव है । वहाँ आजकल अकाल है; किन्तु अकालसे पीड़ित वहाँके लोग अनाज मुफ्त में नहीं लेते । वे सूत कातकर उसकी मजूरीके बदलेमें [ अनाज ] लेते हैं, और इस प्रकार लोगों- पर भार नहीं बनते ।


हिन्दुस्तान में कमी अनाजकी नहीं अपितु पैसेकी है । [ बावलाके ] इन लोगोंने कौनसी मजदूरी की ? सड़क बनानेकी नहीं; सड़क बनानेकी अपेक्षा अनाज पैदा करना अधिक आवश्यक काम है । यह वास्तवमें पहला काम है और फिर कपड़ा तैयार करना दूसरा काम है । उन लोगोंने सूत काता और मजूरीके द्वारा अपने लिये अनाज प्राप्त किया तथा दूसरोंको वस्त्र दिये; यह दोहरा लाभ हुआ। जब आप भी ऐसा करेंगी तब हिन्दुस्तानकी शोभा होगी। यह शोभा इंग्लैंड और जापानकी साड़ियोंसे प्राप्त नहीं हो सकती । आप इन साड़ियोंसे अपने धर्मकी रक्षा नहीं कर सकतीं। आप धर्मका नहीं बल्कि अधर्मका पोषण करती हैं। मैं बहनोंसे आग्रहपूर्वक प्रार्थना करता हूँ कि आप अधर्म छोड़ दें। कुछ बहनें कहती हैं कि हम क्या करें ? हम तो पराधीन हैं। और पुरुषोंका कहना यह है कि स्त्रियाँ ठाट-बाट नहीं छोड़ सकतीं, इसलिए हम लाचार हैं । हमारा तीन-चौथाई पैसा तो उनके वस्त्रोंमें ही चला जाता है, इसलिए पहले आप स्त्रियोंको समझाइये | में बहुत बहनोंसे मिला हूँ । मैंने घर-गृहस्थी भी चलाई है। मुझे बराबर लगता रहा है कि अपनी पत्नीकी अपेक्षा तो में अधिक पराधीन हूँ। आश्रममें दूदाभाईको रखा, उस समय मुझे अपनी पराधीनताका अनुभव हुआ । मैं उन्हें अपने साथ नहीं रख सका। आप स्वादिष्ट भोजन तैयार करती हैं। यदि आपको भोजनालय अथवा होटलसे भोजन लानेके लिए कहा जाये तो आप इसे पसन्द नहीं करतीं ।

 
  1. (१८५७-१९३४); मद्रास उच्च न्यायालयके न्यायाधीश तथा १८९७ में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसके अध्यक्ष ।