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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


आपको यह अपनी मान हानिके समान प्रतीत होता है । इसी तरह आपको चाहिए कि आप अपनी साड़ी स्वयं बनायें, अपने बच्चोंके कपड़े भी आप खुद तैयार करें। सारी स्त्रियाँ ऐसा न कर सकें तो आप जिस तरह अपने-अपने धोबी और नाई रखती हैं। उसी तरह अपने-अपने बुनकर रखें। हम कितने नासमझ हैं; हिन्दुस्तानके प्रति कैसा विश्वासघात किया कि ६० करोड़ रुपया बाहर भेज दिया ! एक समय ऐसा था और उसे बहुत वर्ष नहीं हुए - क्योंकि १०० वर्ष राष्ट्रके जीवनमें अधिक नहीं कहे जा सकते - जब भारत अपने लिए तो वस्त्र तैयार करता ही था, बाहर भी भेजता था । आज ऐसी स्थिति है कि अपनी जरूरतका एक चौथाई भाग ही हम तैयार कर पाते हैं। इससे अधिक लज्जाकी बात और क्या हो सकती है ? उस समय हमारी सभी गरीब और अमीर बहनें अपने-अपने घरोंमें चरखेका मधुर गीत सुनती हुई सूत कातती थीं। उससे रेशम जैसी महीन साड़ियाँ बनती थीं। आजकल बहनें अच्छे-अच्छे भोजन बनाने में अपना समय गँवाती हैं। और यदि उससे समय मिलता है तो बातोंमें नष्ट करती हैं। मैं अत्यन्त विनयपूर्वक आपसे यह कहनेके लिए आया हूँ कि हम खानेके लिए नहीं जीते; जीनेके लिए थोड़ा-सा भोजन मिलता रहे तो हमें उससे सन्तोष मानना चाहिए ।

वर्तमान कालमें हिन्दुस्तानके लोग कमजोर होते जा रहे हैं। बालक हृष्ट-पुष्ट होनेके बजाय एकदम अशक्त दिखाई पड़ते हैं। हमारा ऐशो-आराम इसका कारण है । हमें उतने ही आरामका उपभोग करना चाहिए और ऐसा ही भोजन लेना चाहिए जिससे शरीरको नुकसान न हो और हम जिससे शक्तिशाली बनें। यदि आप तरह-तरहके भोजन बनान तथा बातोंसे समय निकालकर घरोंमें चरखे ले आयें और उनपर सूत कातें तो आप बड़ी-बड़ी मिलोंसे होड़ करने लगेंगी। आप खड्डीसे कपड़ा तैयार करेंगी तो भारतके मुक्त होनेकी अवधि समीप आ जायेगी । तब हिन्दमें धर्मका प्रवेश होगा, हिन्दुस्तान से भुखमरी दूर होगी। अपने बुनकरोंकी बनी हुई साड़ी यदि आपको पसन्द न आये तो पहले-पहल उससे गुजारा कर लीजिए और उन्हें अपनी कलामें सुधार करनेके लिए कहिए। मेरे वस्त्र किसने बनाकर दिये हैं ? गंगाबहनने; गंगाबहन बीजापुर में रहती हैं। उन्होंने पहले मुझे मोटी खादी दी। मैंने तो ग्रीष्म ऋतुके लिए महीन खादीकी माँग नहीं की, फिर भी बहनको भाईपर दया आई। उन्होंने विनती करके अन्य बहनोंसे उत्तम सूत तैयार करवाया। इस प्रकार हम परस्पर मिल-जुलकर काम कर सकते हैं। इसमें प्रेम समाया हुआ है, सत्याग्रह समाया हुआ है। सूरतके बुनकरोंके घर आप पैसेसे भर दीजिये । उनसे कहिए कि वे विलायती अथवा जापानी सूतके नहीं, बल्कि आप जो सूत दें उसके ही वस्त्र बुनें। तभी माना जायेगा कि स्वदेशी व्रतका पालन हुआ । आपके पास स्वदेशी व्रतकी प्रति आ गई है । उसमें जो पहला व्रत लिखा हुआ है, उसका हम पालन कर सकें, तो अच्छा हो । यह व्रत सारे जीवनके लिए भी है और किसी एक निश्चित अवधिके लिए भी । हम इतने कंगाल हैं कि मिलके अलावा और कहींसे सूत प्राप्त नहीं कर सकते । सौमें से पचहत्तरसे भी अधिक बहनोंकी साड़ियाँ मिलकी बनी हुई हैं, यह मैं यहीं देख रहा हूँ । यह शर्मिन्दा होने लायक बात है । हमारा कारीगर वर्ग मशीनोंके सम्मुख जड़वत् खड़ा रहे,