पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 15.pdf/३६६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३३६
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

लिए रद्द करवानेका जो आन्दोलन चल रहा है, उसके अन्तर्गत हमें सत्याग्रहका ही प्रयोग करना चाहिए, यह पहली बात हुई; दूसरी बात यह है कि हम जान और मालको नुकसान नहीं पहुँचायेंगे। मुझे ऐसा लगता है कि सत्याग्रही भी इन दो बातोंका शुद्ध रूपसे पालन नहीं कर सके । मेरा विश्वास है कि हिन्दुस्तानके भिन्न-भिन्न भागों में जो दो हजारसे भी अधिक सत्याग्रही रहते हैं, यदि उन्होंने इन व्रतोंका पालन किया होता तो जो घटनाएँ घटित हुई हैं वे न होतीं । इनसे सत्याग्रहका समस्त हिन्दुस्तानपर इतना अधिक प्रभाव पड़ता कि सारे भारतीय इसके अर्थको ठीक-ठीक समझ गये होते । लेकिन इसके साथ ही में यह भी स्वीकार करता हूँ कि ऐसे सत्याग्रहको निबाहना कठिन है । जान-मालको चोट न पहुँचानेका अर्थ तो यह हुआ कि किसीके प्रति हमारे मनमें भी वैरभाव उत्पन्न न हो। इसके लिए तपश्चर्याकी आवश्यकता है । अन्यायका सर्वथा विरोध करते हुए भी अन्यायीके प्रति वैरभाव न रखना, सत्याग्रहका मूल लक्षण है । जगत् में निर्बल मनुष्य वैरभाव रखते हैं; सबल मनुष्य अपने "वैरभाव" का त्याग कर सकते हैं । सबल अर्थात् शरीर-बल रखनेवाले मनुष्य नहीं । सबल पुरुष और सबल स्त्री वही हैं जिन्हें मरना आता है। इसका अर्थ यह हुआ कि हमें सत्यका पालन करते हुए निर्भयता पूर्वक मृत्युका वरण करना चाहिए और मरते-मरते भी जिसके विरुद्ध सत्याग्रह कर रहे हैं उसके प्रति वैर अथवा क्रोध न करना चाहिए।

सत्याग्रहके सम्बन्धमें हमने जो दूसरी प्रतिज्ञा प्रकाशित की है उसके लिए हम लोगोंसे कह रहे हैं कि वे उसपर हस्ताक्षर करें और सत्याग्रह आन्दोलनकी अवधि तक उसके प्रति श्रद्धा रखें। साधारण लोग इन व्रतोंसे मुकरें तो भले ही मुकर जायें, परन्तु ऐसे सत्याग्रहीको दिवालिया नहीं हो जाना चाहिए। उसका भण्डार तो अक्षय है। सत्याग्रहीकी कोशिशें तो उसके मरनेपर ही बन्द होती हैं। जिस समय प्रजा इन व्रतोंसे विमुख हो जाये उस समय दूसरे उपायोंकी खोज करनी चाहिए। मुझे जुलूस पसन्द नहीं हैं । उससे मुझे जरा भी खुशी नहीं होती। फिर भी आज जो जुलूस निकला है, उससे जनताकी वृत्ति सूचित होती है, उसके प्रेमका पता चलता है और यह भी स्पष्ट हो जाता है कि जनता सत्याग्रहियोंके साथ है । यदि जनता समय-समयपर इस भावनाका परिचय देती रहे कि वह सत्याग्रहियोंके साथ है तो [ सत्याग्रहीको ] उसकी ओरसे यह आशा रखनेका अधिकार है कि जिस समय सत्याग्रह चल रहा है उस समय वह खून-खराबी नहीं करेगी। यदि उसके लिए यह सम्भव न हो तो जनताको चाहिए कि वह सत्याग्रहियोंका और मेरा त्याग कर दे । सत्याग्रह तो इसके बाद भी नहीं रुक सकता । जब जनता सत्याग्रह आन्दोलन में इस तरह सहायता देगी अथवा उससे इस तरह विमुख होगी तब किसी दूसरे रूपमें सत्याग्रह चालू रह सकता है।

मैं प्रजाको बताना चाहता हूँ - श्रद्धापूर्वक बताना चाहता हूँ-कि यदि प्रजा, मैं जैसा कहता हूँ उसके अनुसार करके दिखा सके तो निःसन्देह सरकार यह समझ जायेगी कि इन लोगोंको कदापि रौलट विधेयककी आवश्यकता नहीं है । हम जरा इन विधेयकोंकी उत्पत्ति के सम्बन्ध में विचार करें। इसके बीज प्रजाके प्रति अविश्वासमें निहित हैं और कभी-कभी लोगोंकी ओरसे ऐसा अविश्वास करनेके कारण भी दिये गये हैं । इतना होने पर भी, मैंने अनेक बार कहा है कि ये कारण, इतने सबल नहीं हैं कि जिससे सरकारको