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भाषण : सूरतकी सार्वजनिक सभा में

रौलट विधेयकों-जैसे भयंकर कानून बनाने पड़ें। मैंने तो यहाँतक कहा है कि कारण चाहे कितने ही सबल क्यों न हों, जो सरकार ऐसे भयंकर कानून बनायेगी उसका चलना अत्यन्त कठिन हो जायेगा । इस समय हमें जो हालात दिखाई दे रहे हैं उनमें भी यदि कोई प्रजा यह बता सके कि हम [ सरकारके प्रति ] क्रोध अथवा वैरभाव नहीं रखते तो उसका सरकारपर कितना प्रभाव पड़ सकता है, इसे त्रैराशिकके उदाहरणके समान आसानीसे समझा जा सकता है। हमें सत्याग्रहके इस अर्थको समझ लेनेपर कानून-भंग करनेका अधिकार प्राप्त हो जायेगा । लेकिन इससे ऐसी आशंका करनेकी तनिक भी आवश्यकता नहीं है कि तब तो हमें सहस्रों वर्ष रुकना पड़ेगा। मुझे स्वयं तो सत्याग्रहकी क्षमताके सम्बन्ध में यह विश्वास है कि यह शुद्ध रूपसे शुरू-भर हो जाये। फिर इसे हिन्दुस्तान में फैलते देर नहीं लगेगी । मेरा दृढ़ विश्वास है कि हम जुलाईकी पहली तारीखको रौलट विधेयकों के सम्बन्धमें सविनय अवज्ञा प्रारम्भ कर सकेंगे। ऐसी कोई बात नहीं है जिससे मैं अपने इस विचारसे टल जाऊँ। इतना ही नहीं बल्कि मुझे जो-जो अनुभव प्राप्त हो रहे हैं उनके आधारपर मैं तो यह मानता हूँ कि हिन्दुस्तान सत्याग्रह [ के मर्म ] को समझ गया है । मैं आपसे यह नहीं मनवाना चाहता कि हिन्दुस्तान सत्याग्रहका पालन करनेके लिए तैयार हो रहा है । लेकिन मैं यह अवश्य कहना चाहता हूँ कि जब सत्याग्रही इन विधेयकों की सविनय अवज्ञा करना आरम्भ करेंगे तब हिन्दुस्तान के लोग शान्ति बनाये रखेंगे और मौन साध लेंगे। साथ ही मुझे उम्मीद है, कि अब यह जो सवा महीनेका समय रह गया है उसमें हम सरकारको इतना प्रभावित कर सकते हैं कि इन रौलट विधेयकोंको रद करवानेके लिए हमें सत्याग्रह-आन्दोलन आरम्भ करनेकी जरूरत ही न पड़े।

मैं पहले ही कह चुका हूँ कि सत्याग्रह शुरू हो जानेपर सत्याग्रह-आन्दोलन केवल कानूनोंको भंग करने तक ही सीमित नहीं रहता। सत्याग्रहके व्यापक स्वरूपमें अनेक बातोंका समावेश हो जाता है और उनमें सबसे महत्त्वपूर्ण वस्तु स्वदेशी है । रौलट विधेयकोंके विरोधमें की जानेवाली सविनय अवज्ञासे भी यह अधिक महत्त्वकी वस्तु है । इसका उनके साथ कोई सम्बन्ध नहीं है । इन व्रतोंको सब भाइयोंने समझ लिया होगा । ये व्रत दो तरहके हैं। उनमें से एक ही अधिक मूल्यवान है। दूसरा अपेक्षाकृत कम मूल्यवान माना जायेगा। पहला व्रत यह है कि हम हिन्दुस्तानमें ही हाथसे कते-बुने सूती, ऊनी अथवा रेशमी वस्त्रोंका उपयोग करें। इसका पालन करना हमारा धर्म है । इसका पालन न कर सकें, तो दूसरा व्रत है कि हम कमसे कम हिन्दुस्तानकी मिलों द्वारा बने कपड़े का उपयोग करें; लेकिन यह हमारी दुर्बलताकी निशानी है। यदि हम पहले व्रतका पालन करते हैं तो उसमें से एक कर्त्तव्य उत्पन्न होता है। पहले हम हिन्दुस्तानकी आवश्यकताके लिए कपड़ा तैयार करते थे और उसका निर्यात भी कर सकते थे । और हम आज भी अपनी आवश्यकताका एक चौथाई माल ही तैयार करते हैं; अर्थात् हम अपना तीन चौथाई कर्त्तव्य नहीं निबाहते । परिणामस्वरूप तीन करोड़से भी अधिक व्यक्ति भूखों मरते हैं। इसके और भी कारण हैं, यह मैं जानता हूँ । लेकिन इस भुखमरीका बड़ेसे बड़ा कारण, हमारा स्वदेशी के व्रतको भंग करना ही है । इसलिए मैं आपसे प्रार्थना करता हूँ कि हमें इस पापका प्रायश्चित्त करना चाहिए। आज हिन्दुस्तानमें अच्छा कपड़ा नहीं बनता और केवल [ मोटी ] खादी ही तैयार होती है, तो यह हमारी भूलके

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