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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कारण ही है और प्रायश्चित्त स्वरूप हमें यही खादी पहननी चाहिए। [ मोटी ] खादीके अलावा और कपड़ा भी मिलता है । लेकिन हमारी भावना यह होनी चाहिए कि केवल [ मोटी ] खादीसे भी हम निभा लें। यह हमारा प्रायश्चित्त है और अबसे स्वदेशी व्रतका पालन करना हमारा निश्चित कर्त्तव्य है । ऐसा करके हम १९१७-१८ में जो ६० करोड़ रुपया विदेशोंको गया, इस वर्ष उसे जानेसे रोक सकेंगे। जिस हदतक स्वदेशी - व्रतका पालन करेंगे उस हृदतक देशका पैसा देशमें ही रह सकेगा । सत्याग्रह करनेमें, कानून-भंग करनेमें खतरा हो सकता है, मतभेद हो सकता है, लेकिन स्वदेशी व्रतका पालन करनेमें ख़तरा है ही नहीं। छोटेसे-छोटा बच्चा भी इसका पालन कर सकता है और हम स्वदेशी- व्रतका पालन करें, यह हमारा कर्त्तव्य है । इस विषयमें दो मत हो ही नहीं सकते। ऐसे विचार हम ही व्यक्त करते हैं, सो बात नहीं । अनेक अंग्रेज भी ऐसे विचार प्रकट करते हैं और थोड़े समय में हम अनेक अंग्रेजोंको इस सम्बन्धमें हमारी सहायता करते देख सकेंगे । मेरा तो यहाँतक विश्वास है कि यदि हम शुद्ध स्वदेशी - व्रतका पालन करेंगे और यदि उसमें बहिष्कारका अंश न हो तो खुद वाइसराय से इसका पालन करवा सकेंगे। स्वदेशी व्रतका यह एक भाग हुआ ।

दूसरे भागपर आगे विचार करें। हमारी जरूरतका एक चौथाई कपड़ा ही देशमें मिल सकता है। तो फिर इतने अधिक मनुष्योंकी जरूरत के लिए हम किस तरहसे कपड़ा तैयार करें ? फिलहाल जो कपड़ा तैयार होता है उसपर यदि हम अधिकार कर लें तो हम गरीबोंका नुकसान करते हैं। हम यह न करें। स्वदेशीका व्रत लेनेवाले समझ सकते हैं कि अपने उपयोगके लिए आवश्यक कपड़ा उन्हें खुद ही तैयार करना होगा । इसका अर्थ यह हुआ कि घर-घरमें हमें सूत कातना चाहिए और खड्डी चलानी भी शुरू कर देनी चाहिए। जितने बुननेवाले हैं उनसे अनुरोध करके, उन्हें संरक्षण देकर, उनके धन्धेका जीर्णोद्धार करवाया जा सकता है । पहले असंख्य महिलाएँ अपने घरोंमें सूत काता करती थीं। ऐसी बहुत-सी महिलाएँ अभी भी जीवित हैं; उनसे भी प्रार्थना कर सकते हैं कि आप अपना यह उत्तम कार्य फिरसे शुरू कीजिए। यदि ऐसा हुआ तो स्वदेशी व्रतकी प्रतिष्ठा होगी और इसके बड़े अच्छे परिणाम प्राप्त होंगे ।

मैं आपका इससे अधिक समय नहीं लेना चाहता। मुझे उम्मीद है कि मैंने आपसे जो प्रार्थना की है आप उसपर गौर करेंगे। एक तो सत्याग्रह क्या है आप इसे समझेंगे और दूसरोंको समझायेंगे और दूसरे स्वदेशी व्रतकी प्रतिज्ञा लेंगे तथा दूसरोंको भी प्रतिज्ञा लेनेका महत्त्व समझायेंगे और उसका पालन करवायेंगे। इसका अर्थ यह हुआ कि हम स्वयं कपड़ा तैयार करेंगे अथवा करवायेंगे । ऐसा करते हुए हम किसीको नुकसान नहीं पहुँचायेंगे । आपने इतने धीरज और शान्तिसे मेरी इस दीन प्रार्थनाको सुना, उसके लिए मैं आपका आभारी हूँ । ये बातें आपको सच्ची लगी हों और इसलिए यदि आप इनपर अमल करेंगे तो मैं आपका विशेष रूपसे आभारी होऊँगा ।

[ गुजरातीसे ]

गुजराती, १-६-१९१९}}