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२९९. प्राक्कथन : 'हिन्द स्वराज्य' के लिए[१]

बम्बई
मई २८, १९१९

मैं इस पुस्तिकाको एकाधिक बार पढ़ गया हूँ । इस समय इसका ज्योंका-त्यों छाप दिया जाना ही ठीक है । परन्तु यदि मैं इसमें संशोधन करना ही चाहूँ तो उसमें एक ही शब्द बदलना चाहूँगा क्योंकि मैं इस बातका वचन अपने एक अंग्रेज मित्रको दे चुका हूँ। उन्होंने संसदके सम्बन्धमें मेरे द्वारा प्रयुक्त "वेश्या" शब्दपर आपत्ति की थी। यह शब्द उन्हें सुरुचिपूर्ण नहीं जान पड़ा । पाठकोंको मैं फिर याद दिला दूँ कि प्रस्तुत पुस्तिका मूल गुजराती पुस्तिकाका रूपान्तर है ।

जो विचार इन पृष्ठोंमें व्यक्त किये गये हैं उनको अनेक वर्षों तक आचरणमें उतारनेका प्रयत्न करते रहकर जान पड़ता है कि उसमें दिखाया गया मार्ग ही स्वराज्य- का सच्चा मार्ग है। सत्याग्रह अर्थात् प्रेम-धर्म ही जीवनका धर्म है। उससे च्युत होना विनाशकी ओर तथा उसपर आरूढ़ रहना नवजीवनकी ओर ले जाता है ।

मो० क० गांधी

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन होमरूल, चतुर्थ संस्करण, गणेश ऐंड कं०, मद्रास

३००. पत्र : एस्थर फैरिंगको

बम्बई
बुधवार [ मई २८, १९१९]

प्रिय बेटी,

महादेव अपनी जिदके कारण बीमार हो गये हैं। जिद्दी मित्र, भाई, लड़का अथवा मन्त्री अक्सर ऐन वक्त पर धोखा दे जाते हैं। महादेव तो एक-साथ यह सब कुछ है । पहले तो मैंने विचार किया कि मैं प्रतिकार स्वरूप स्वयं उपवास करूँ, बदला लूँ । परन्तु ऐसा करता, तो तुम 'बाइबिल' का वह अद्भुत वचन कि 'प्रतिकारका स्वत्व मुझको ही है' लेकर मुझपर टूट पड़तीं। इसलिए मैंने कम कड़ा कदम उठाया है, और सब पत्र स्वयं ही लिखने लगा हूँ । लगातार चाहे जितनी देर तक लिखनेका काम करनेमें मुझे तो मजा आता है। हाथ काफी ठीक काम देने लगा है।

मैं चाहता हूँ कि जिन्हें तुम प्यार करती हो, उनके दुःखमें शरीक न हो सकने पर तुम अपना मन इतना दुःखी मत किया करो। अपना करार[२]पूरा करना ही तुम्हारे

 
  1. १. सबसे पहले १९१० में प्रकाशित; देखिए खण्ड १०, पृष्ठ ६-६९ ।
  2. २. मिशनके साथ ।