उसे भी छपवाकर उसका प्रचार कर सकते हैं। मैं इसे आज या कल पूरा पढ़ लूँगा । लेकिन मेरा खयाल है, यह सुझाव तुरन्त देना चाहिए, इसीलिए मैं लिख रहा हूँ ।
मुझे अभी एकदम थोड़ी प्रतियाँ भेज दें। मैं उन्हें कुछ डॉक्टरोंको भेजकर उसके सम्बन्धमें उनकी राय जानना चाहता हूँ।
महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ४
७. पत्र : रामनन्दनको
अगस्त ६, १९१८[१]
तुम्हारा पत्र मिला । तुम्हारे खाते रखकर तुमको मैं जानेका खर्च दे सकता हूँ । भरतीमें जानेके समय में अधिकारियोंके पाससे ले सकूँगा, तो आनेका पैसा भेजूँगा । जबतक भरतीमें जानेका नहीं होगा, तबतक तुमको में वापस नहीं बुला सकूँगा । भाई श्यामजीके बारेमें क्या बात हुई, वह तुमने सुनी थी। तुम्हारी मुसाफिरीका बोझा आश्रमपर डालना अनुचित है । तुम्हारी आकांक्षा मैं समझ सकता हूँ । मुझे लगता है कि जो गृहस्थका सम्बन्ध रखना चाहते हैं, उनको आश्रममें लेना ही नहीं चाहिए । तुमको मना करना योग्य नहीं लगता, तुमको खर्च देना भी योग्य नहीं लगता - ऐसा धर्म संकट मेरे ऊपर है । तुम ही मुझे छुड़ा सकते हो। यदि उपर्युक्त तरहसे जाना चाहो तो इस पत्रको फूलचन्दभाईको[३]बतलाओ । वे तुमको जानेका खर्च देंगे ।
महादेवभाईकी डायरी, खण्ड १
८. पत्र : हनुमन्तरावको
अगस्त ७, १९१८
तुम्हारी तबीयतका हाल जानकर अफसोस हुआ। मेरी समझमें सबसे बड़ी कसर तो व्यायामकी है । जब श्रम काफी न हो तब खुराक हल्की लेनी चाहिए और उसमें नाइट्रोजन और चिकने पदार्थ बिलकुल नहीं होने चाहिए। निश्चय ही गेहूँ, फल, चावल, और साग-भाजी खानेसे स्वास्थ्य अच्छा रहता है। इनसे काफी शक्ति न मिले तो जरूरत