३०२. अनौपचारिक सत्याग्रह सम्मेलनपर टिप्पणी[१]
बम्बई
मई ३०, १९१९
यह सम्मेलन इस माहकी २८ तारीखको बम्बई में हुआ था । इसमें सिन्ध, अहमदाबाद, इलाहाबाद और लखनऊसे प्रतिनिधि आये थे ।
श्री गांधीने पंजाबकी स्थितिपर प्रकाश डालते हुए कहा-'मार्शल लॉ' शीघ्र ही रद किया जानेवाला है, इसलिए स्थितिपर सत्याग्रहके दृष्टिकोणसे विचार करनेका समय आ गया है । उन्होंने कहा, कि यदि रौलट अधिनियमके सम्बन्धमें ली गई सत्याग्रह-शपथके शब्दोंका ही विचार करें तो आन्दोलन चलानेकी बात उसके अन्तर्गत नहीं आती। इसलिए प्रत्येक सत्याग्रहीको पंजाबकी समस्यापर रौलट अधिनियमसे सम्बन्धित शपथको अलग रखकर विचार करना है । उन्होंने कहा, यहाँ जितने लोग उपस्थित हैं, मैं इस सुझावके बारेमें उनकी राय चाहता हूँ कि पंजाबके दंगोंके कारणकी जाँच के लिए, मार्शल लॉको किस प्रकार कार्यान्वित किया जा रहा है इसे मालूम करनेके लिए और फौजी अदालत (मार्शल लॉ ट्राइब्यूनल) के द्वारा सुनाई गयी सजाओंमें रद्दोबदल करनेके लिए एक निष्पक्ष और स्वतंत्र जाँच समितिकी नियुक्तिके सम्बन्धमें मैं वाइसरायसे मिलूं या नहीं। साथ ही आप लोग इस बातपर भी परामर्श दीजिए कि अगर उपरोक्त समितिकी नियुक्तिकी बात न मानी गई तो भारत- मन्त्रीकी सेवामें सार्वजनिक अपील भेजनेके बाद सत्याग्रह शुरू कर दिया जाय या नहीं। श्री गांधीने कहा कि पंजाबकी बाबत या रौलट अधिनियमके (प्रश्नपर) सत्याग्रह छेड़े जानेपर लोग हिंसापर उतारू हो जायेंगे, ऐसा मुझे तो बिलकुल नहीं लगता । हर हालत में मेरी सलाह तो यही है कि फिलहाल सत्याग्रह केवल बम्बई प्रान्तके सत्याग्रहियों तक ही सीमित रखा जाये । आन्दोलनके सिलसिले में कोई भी हड़ताल नहीं की जानी चाहिए, यहाँतक कि सविनय अवज्ञा करनेपर प्रमुख सत्याग्रही गिरफ्तार हो जायें तो भी नहीं। अगर किसी भी व्यक्ति द्वारा हिंसा करनेका लेशमात्र भी अन्देशा मालूम हो तो किसी भी प्रकारका प्रदर्शन न किया जाये। इस प्रकारके प्रदर्शन-विहीन सत्याग्रहका स्वरूप लगभग शुद्धतम होगा । इस प्रकारका सत्याग्रह करनेकी क्षमता तभी सम्भव है जब सत्याग्रहियोंके हृदयोंमें मौनभावसे कष्ट सहनकी प्रभावकारितामें पक्का विश्वास हो । उन्होंने कहा कि रौलट अधिनियम के विरुद्ध सविनय अवज्ञा आन्दोलन दुबारा छेड़ने में मुझे कोई कठिनाई प्रतीत नहीं हो रही है। एक प्रश्नके उत्तरमें श्री गांधीने कहा कि सम्भव है कि पंजाबके मामलेमें अधिकसे-अधिक दो सप्ताह बाद सत्याग्रह छेड़ना पड़े । परन्तु मैंने इस बातकी उम्मीद नहीं छोड़ी है कि
- ↑ १. गांधीजी द्वारा हस्ताक्षरित इस टिप्पणीपर तारीख " मई ३० पड़ी हुई थी और उसपर लिखा था "प्रकाशनार्थं नहीं" ।