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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जाँच समितिकी नियुक्ति के सम्बन्धमें की गयी प्रार्थना वाइसराय महोदय स्वीकार कर लेंगे। कुछ वाद-विवादके पश्चात् श्री जमनादासको छोड़कर शेष सभी उपस्थित व्यक्ति- योंने गांधीजीके प्रस्तावका समर्थन किया। श्री जमनादासने गांधीजीके विचारको तो पसन्द किया परन्तु उनके प्रस्तावको नहीं, क्योंकि उन्हें पूरा यकीन था कि श्री गांधीकी अथवा अन्य किसी प्रमुख सत्याग्रहीकी गिरफ्तारीके पश्चात् हिंसा हुए बिना न रहेगी।[१]

संन्यासी स्वामी श्रद्धानन्दका एक पत्र पढ़कर सुनाया गया जिसमें लिखा था कि मैं इस आन्दोलनसे अपने हाथ खींच ले रहा हूँ । उस पत्र में यह भी लिखा था कि दिल्ली समिति लगभग एक माह हुआ तोड़ी जा चुकी है। श्री हसन इमामका पत्र भी पढ़कर सुनाया गया जिसमें लिखा था कि श्री गांधी जो भी निर्णय करेंगे, वे उसे मानने तथा उसके अनुसार अमल करनेको तैयार हैं, परन्तु पिछली घटनाओंको देखते हुए यह बुद्धिमत्ता - पूर्ण होगा कि सत्याग्रहका विचार त्याग दिया जाये ।

श्री गांधीने परमश्रेष्ठके निजी सचिवको एक पत्र लिखा है ।

हस्तलिखित अंग्रेजी मसविदे (एस० एन० ६६२८ ) की फोटो- नकलसे ।

३०३. पत्र : एस० आर० हिगनेलको

लैबर्नम रोड
बम्बई
मई ३०, १९१९

प्रिय श्री हिंगनेल,[२]

मैंने पंजाबकी घटनाओंके बारेमें किसी प्रकारकी सार्वजनिक घोषणा नहीं की, यह बात परमश्रेष्ठको मालूम है । देशवासियोंके दिलोंमें अपने विषयमें गलतफहमी पैदा हो जानेका खतरा तक मोल लेकर भी मैंने सार्वजनिक रूपसे कुछ नहीं कहा क्योंकि राय स्थिर करनेके लिए मेरे पास विश्वसनीय सामग्री न थी । मैं मार्शल लॉकी अकारण भर्त्सना नहीं करना चाहता था और ऐसा कोई काम भी नहीं करना चाहता था जिससे अनावश्यक ही स्थानीय अधिकारीगण चिढ़ जाते । और फिर मैं यह भी नहीं चाहता था कि सर माइकेल ओ'डायर'[३]द्वारा शान्तिपूर्ण दिनोंमें किये गये कथित कठोर शासनसे इस निष्कर्षपर पहुँचें कि उन्होंने मार्शल लॉके अन्तर्गत भी जरूरत से ज्यादा कड़े कदम उठाये होंगे ।

परन्तु गत अप्रैल में जनता द्वारा की गयी हिंसा के परिणामस्वरूप पंजाबमें जिस हद तक मार्शल लॉ लगाया गया था, जाहिरा तौरपर तो वह उस हद तक उठा लिया गया है और इसलिए अब उसके प्रशासनपर बिना किसी अनौचित्यके विचार किया

 
  1. श्री जमनादासने इस मतभेदके कारण सत्याग्रह-सभासे त्यागपत्र दे दिया था ।
  2. वाइसरायके निजी सचिव ।
  3. पंजाबके लेफ्टिनेंट गवर्नर, १९१३-९ ।