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पत्र : एस० आर० हिगनेलको


जा सकता है । यह भी मुझे स्वीकार कर लेना चाहिए कि लोगोंपर कोड़ोंकी मार, पंजाबके बाहर रहनेवाले वकीलोंके विरुद्ध निषेधाज्ञा तथा 'सिविल ऐंड मिलिटरी गजट'में प्रकाशित इस निषेधाज्ञाका [ उच्चाधिकारियोंके ] संकेतपर किये गये समर्थनसे मेरे मनमें बड़ी गहरी आशंकाएँ उत्पन्न हो गई हैं । सरकारी विज्ञप्तियाँ जितनी होनी चाहिए उतनी प्रामाणिक नहीं हैं । कुछमें अगर बहुत-सी बातें स्वीकार की गई हैं, तो बहुत-सी छोड़ भी दी गई हैं। पंजाबकी घटनाओंके बारेमें बरती गई पोशीदगीकी तीव्र आलोचना प्रारम्भ हो गई है। भारतीय समाचारपत्रोंका मुँह एकमद बन्द कर देनेके परिणामस्वरूप अत्यधिक रोष उत्पन्न हुआ है । और अभियुक्तोंको लम्बी-लम्बी सजाएँ दिये जानेके कारण जनता आतंकित हो गई है ।


इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि हुकूमतको खास-खास परिस्थितियों में मार्शल लॉ घोषित करनेका अधिकार है। सरकार भी यह मानेगी कि मार्शल लॉके अन्तर्गत उठाये गये कदमोंका औचित्य जनताके सामने सिद्ध किया जाये - खास तौर पर उपरोक्त परिस्थितियोंमें । इसलिए मैं समाचारपत्रों द्वारा की गई इस प्रार्थनासे अपनी सहमति प्रकट करता हूँ कि पंजाबके दंगोंके कारणों, पंजाबमें मार्शल लॉके कार्यान्वित करनेके तरीकों और फौजी अदालत (मार्शल लॉ ट्राइब्यूनल) द्वारा दी गई सजाओंके सम्बन्धमें तथ्य हासिल करनेके लिए एक स्वतंत्र और निष्पक्ष जाँच समिति नियुक्त की जाये। मुझे विश्वास है कि यदि इस प्रकारकी समिति नियुक्त की गयी तो जनसाधारणका रोष कुछ शान्त होगा और सरकारकी नेकनीयती के बारेमें विश्वास (जो पंजाबकी घटनाओंके कारण लगभग डाँवाडोल हो गया है) वापस लौटने लगेगा । यदि इस प्रकारकी जाँच समिति नियुक्त करनेके सिद्धान्तको मान लिया जाये-आशा तो है कि मान लिया जायेगा तो मुझे यकीन है कि जिस समितिकी नियुक्ति की जानेवाली है उसमें ऐसे सरकारी और गैरसरकारी सदस्य रखे जायेंगे जिनपर लोगोंको भरोसा हो ।

क्या आप कृपा करके यह पत्र परमश्रेष्ठके पास पहुँचा देंगे ? और क्या आप इसका उत्तर शीघ्र भेजनेका कष्ट उठायेंगे ?

हृदयसे आपका,

हस्तलिखित दफ्तरी अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ६६२९) की फोटो-नकलसे ।