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३०४. पत्र : एच० एस० एल० पोलकको

लैबर्नम रोड
बम्बई
मई ३०, १९१९

प्रिय हेनरी,

आजकल मैं तुम्हारे बारेमें जो कुछ भी जान पाता हूँ सो केवल 'इंडिया 'में प्रकाशित तुम्हारे कार्यके विवरणसे ही। मुझे मिलीका[१]एक मधुर पत्र प्राप्त हुआ था। उस पत्रका उत्तर फिलहाल अलगसे देना संभव नहीं है। दिलकी कमजोरीसे हाथ काँपते रहते हैं । मेरे शरीरमें अब संघर्ष चलाने भरकी शक्ति है । आशा है तुम भरण- पोषण के लिए पर्याप्त कमा लेते होगे और तुम सब लोग सानन्द होगे । कृपया पिताजी, माताजी, मॉड और सैलीसे कहना कि मुझे उनका और उनकी अनेक मेहरबानियोंका प्रायः खयाल आया करता है । आश्रमका काम ठीक चल रहा है, राष्ट्रीय पाठशाला भी प्रगति कर रही है ।

अब कामकी बातपर आएँ ।

इस पत्रके साथ मैं वाइसरायको लिखे पत्रकी[२] प्रतिलिपि तथा सत्याग्रह-सम्मेलनके बारेमें टिप्पणियाँ भेज रहा हूँ। इनमें से प्रकाशनके लिए एक भी नहीं है । वहाँ कुछ ही दिनोंमें श्रीमती नायडू स्वास्थ्य लाभके लिए पहुँच रही हैं। वे बहुत ही अच्छी महिला हैं। उनसे अवश्य मेलजोल बढ़ाना ।

मैं देख रहा हूँ कि श्री मॉण्टेग्युने एक भाषण दिया है जिसमें उन्होंने रौलट अधिनियमकी हिमायत की है। वे चाहे जितनी हिमायत करें, यह [ रौलट अधिनियम ] खत्म हुए बिना नहीं रह सकता । वर्तमान संघर्ष दक्षिण आफ्रिकाके संघर्षकी आश्चर्यजनक पुनरावृत्ति है । इस अधिनियमको रद करानेके प्रयत्नमें भी कुछ लोग अपने प्राण गँवानेको तैयार हैं। सरकार दिखाना चाहती है कि वह जनताकी रायको आसानीसे ठुकरा सकती है; लेकिन हमें यह दिखला देना है कि वह ऐसा नहीं कर सकती ।

'आत्मबल बनाम पशुबल'के संघर्षका एक ही परिणाम हो सकता है। बात केवल इतनी ही है कि आत्मबल बहुत बिखरा हुआ है तथा निष्ठारहित है; और पशुबल सुसंगठित और सुनियंत्रित है। इसलिए, यद्यपि परिणामका स्वरूप निश्चित है, तथापि संघर्षका लम्बे अर्से तक चलते रहना स्वाभाविक है ।

सम्भव है कि शिष्टमण्डलके सदस्योंकी जो फौज वहाँ जा रही है श्री मॉण्टेग्यु उससे रौलट अधिनियमको रद कराने या सुधारनेमें से एकको चुननेकी बात कहें।

 
  1. श्री पोलककी धर्मपत्नी ।
  2. २. देखिए "पत्र : जे० एल० मैफीको”, १६-५-१९१९ ।