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पत्र : शंकरलाल बैंकरको

पड़नेपर बादमें इनके साथ दालें भी मिला ली जायें; मूँगफली भी। क्या तुम बंगलौर या नीलगिरी नहीं जा सकते ? अगर जा सको, तो वहाँकी स्फूर्तिदायक जलवायुसे तुम जल्दी ही सँभल जाओगे । स्नानके उपचारों और मानसिक विश्रामसे तुम्हें कुछ फायदा तो होगा, किन्तु केवल इसीसे तुम अपना पहलेवाला शरीर नहीं पा सकोगे । तुम्हें तो पहले भी अच्छा होना चाहिए।

देवदास कहता है कि तुम उसपर बहुत प्रेम रखते हो। तुम चले जाओगे, तो उसे सूना-सूना लगेगा। दूसरी कोई पढ़नेकी सामग्रीके बजाय तुम साथमें एकाध हिन्दी पुस्तक ले जाना ।

तुम जहाँ भी जाओ, वहाँ पहुँचनेपर मुझे लिखना ।

हृदयसे तुम्हारा,
मो० क० गांधी

[ अंग्रेजीसे ]
महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे ।
सौजन्य : नारायण देसाई

९. पत्र : शंकरलाल बैंकरको[१]

पूज्य बनके[२]नाम भेजा हुआ आपका तार पढ़ा। मैं चाहता हूँ कि आप मेरी इतनी चिन्ता न करें। मेरे प्रति आपके प्रेमके कारण ही ऐसे उद्गार निकलते हैं। मैं [ कांग्रेसमें] चाहे आऊँ, चाहे न आऊँ दोनों बातोंका कारण केवल देशहित ही होगा । यह तो हो ही नहीं सकता कि मैं रोषके कारण न आऊँ । यदि मुझे ऐसा जान पड़े कि मेरे न आनेसे अधिक देश-सेवा होगी, तो भी क्या आप यही कहेंगे कि मुझे आना ही चाहिए ?

मोहनदासके वन्देमातरम

[ गुजरातीसे ]
महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ४


  1. यंग इंडियाकेप्रकाशक; अहमदाबादकी कपड़ा मिलोंकी हड़तालके दौरान गांधीजीके निकट सम्पर्क में आये; १९२२ में गांधीजीके साथ जेल गये ।
  2. अनसूयावेन।