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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हिजरत करनेके अपने प्रस्तावके समर्थनमें कुरानका जो उदाहरण दिया है उसके सम्बन्धमें कुछ कहनेकी धृष्टता करूँगा । पैगम्बर साहबने जिन स्थितियोंमें हिजरत की, वे उन स्थितियोंसे भिन्न थीं जिनमें आप इस कार्रवाईको करनेका विचार करते हैं । वे अपने साथ समस्त मुसलमानोंको मदीना शरीफ ले गये थे । यह मक्का शरीफके काफिरोंके विरुद्ध उनका सत्याग्रह था। उस समय इस्लामका पौधा बहुत कोमल था और उसको आन्तरिक और बाह्य तूफानोंसे बचानेकी जरूरत थी । उस समय वहाँ उनके छोटे-से दलके नष्ट हो जानेकी सम्भावना थी। वह खतरा मोल लेनेकी बजाय मक्काके काफिरोंका अज्ञान- जनित क्रोध ठंडा पड़ जानेतक के लिए वे अपने अनुगामियोंके साथ एक सुरक्षित स्थानमें चले गये। मुझे आपके और नबीके मामलोंमें कोई साम्य दिखाई नहीं देता । किन्तु मुझे आपकी मेहरबानीका बेजा फायदा नहीं उठाना चाहिए। मुझे कुरानकी व्याख्याके आधारपर आपके साथ धर्म-सम्बन्धी चर्चामें उतरनेका अधिकार नहीं है । उसकी सीखोंसे जैसा परिचय आपका है - और होना ही चाहिए- वैसा परिचय रखनेका दावा मैं नहीं कर सकता। मैंने जितना कुछ कहा है, वह कहनेका साहस इसी बलपर किया है कि मेरी व्याख्याको कुछ ऐसे लोग स्वीकार करते हैं, जो हम दोनोंके मित्र हैं । फिर भी मेरा अनुरोध है कि आप इस मामलेपर प्रार्थनापूर्ण मनसे तनिक और विचार करें । मुझे आपको यह आश्वासन देनेकी आवश्यकता नहीं है कि मैंने वाइसरायको लिखे अपने पत्रमें[१]मुसलमानोंकी जो माँगें रखी हैं उनको मैं स्वीकार करवानेका समुचित प्रयत्न करूँगा । मुझे इसमें कोई सन्देह नहीं है कि यदि सभी प्रमुख मुसलमान अपनी माँग मिल-जुलकर उचित भाषामें प्रस्तुत करें, तो उनके पक्षमें दुनिया-भरमें एक ऐसा लोकमत तैयार होगा कि 'लीग' [ ऑफ नेशन्स ] से उसका विरोध करते नहीं बनेगा और इंग्लैंड भी निश्चय ही उसके सामने इसे अवश्य जोर देकर रखेगा । आशा है,

आप सब स्वस्थ होंगे ।
सभीको मेरा प्यार ।
[ अंग्रेजीसे ]

नेशनल आर्काइव्ज़ ऑफ इंडिया : होम : पॉलिटिकल : सितम्बर १९१९, सं० ४०६-४२८-ए ( गोपनीय ) ।

 
  1. देखिए " पत्र : जे० एल० मैंफीको ", ५-५-१९१९ ।