३१४. पत्र : एच० एस० एल० पोलकको
लैबर्नम रोड
बम्बई
[ जून ६, १९१९]
मैं देख रहा हूँ कि तुम कॉटनके साथ जूझ रहे हो । मेरे खयालसे तुम्हें उसने 'सवेंट्स ऑफ इंडिया' से सम्बन्धित उद्धरण पेश करके धराशायी कर दिया है; फिर भी कन्धे हम दोनोंके अभी नहीं लगे हैं। मेरे ऊपर कष्टका जो पहाड़ टूट पड़ा है, उसमें मुझे [मानो] एक आनन्द आ रहा है। श्रद्धानन्दजी चले गये, जमनादास छोड़ गये । कुछ और भी जायेंगे। किन्तु में इससे इतना नहीं घबराता जितना कि जनताको हिंसाकी ओर बढ़ते देखकर घबराता हूँ। पहली जुलाईकी विश्वासपूर्वक प्रतीक्षा कर रहा हूँ । सरकार हर परिस्थितिका सामना करनेके लिए तैयार है । मैं हर प्रकारके प्रदर्शनसे बचनेकी कोशिश करूँगा । सविनय अवज्ञा आन्दोलन में इस बार गहराई अधिक होगी, हालाँकि उसका विस्तार इतना अधिक नहीं होगा । श्री मॉण्टेग्यु से साफ-साफ कह देना कि जबतक रौलट कानून वापस नहीं ले लिये जायेंगे, तबतक हिन्दुस्तानमें शान्ति नहीं होगी । यहाँके स्थायी अधिकारियोंने उनको सही चीज नहीं बतलाई है। श्री हॉर्निमैनके मामलेमें कितनी भयंकर गलतबयानी की गई है। उन्हें निर्वासित करनेका असली कारण शायद कभी नहीं बताया जायेगा । 'यंग इंडिया' ध्यानपूर्वक पढ़ते रहना । अग्रलेख ज्यादातर मेरे ही होते हैं।[१]सच पूछो तो मैं ही उसका सम्पादक हूँ । सिन्ध-सम्बन्धी लेख देखना ।[२]अभी तो और अधिक बातें सामने आयेंगी । मिस्टर मॉण्टेग्युको न्याय करना हो तो उन्हें चाहिए कि वे अधिकारियोंकी आँखोंसे देखना बन्द कर दें । ये लोग तो उस पद्धतिको बरकरार रखना चाहते हैं जिसके अन्तर्गत उनको मौजूदा सत्ता मिली है; इसलिए यहाँकी परिस्थितिका निष्पक्ष विवरण इन लोगोंसे नहीं मिल सकता । रौलट कानून रद होना ही चाहिए, मुसलमानोंको सन्तुष्ट करना और ठोस सुधार मंजूर किये जाने चाहिए । पंजाबके दुःखद काण्डकी जाँच करनेके लिए एक ऐसी निष्पक्ष समिति बनाना नितान्त आवश्यक है, जो सुनाई गई सजाओं में रद्दोबदल कर सके । ये चार बातें की जायें, तभी इस दुःखी देशमें शान्ति हो सकती है । जबतक ब्रिटेनके लाभ के लिए हिन्दुस्तानका शोषण जारी है, तबतक इस देशमें सम्पन्नता नहीं आ सकती । मुद्रा विनिमयकी दरमें दुबारा वृद्धि कर दी गई है । इसका परिणाम यह होगा कि बदलेमें कुछ भी लाभ