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पत्र : वी० एस० श्रीनिवास शास्त्रीको

हुए बिना हिन्दुस्तानको करोड़ों रुपयेका नुकसान होगा। इसका तो यह अर्थ हुआ कि तुम लंकाशायर और सिविलियन अफसरोंको बोनस दे रहे हो । यदि ऊपर बताई हुई बातोंकी राहत देकर लोगोंका मन शान्त कर दिया जाये तो इन सब बातोंपर समझौता हो सकता है । रौलट कानूनोंका अर्थ यही होता है कि सरकारने लोकमतको ठुकरानेका निश्चय कर लिया है। जिस समय सुधारोंकी बातचीत चल रही है, उस समय सरकारका ऐसा रवैया असह्य है ।

यह पत्र तुम्हें श्रीमती नायडू देंगी। ये अद्भुत महिला हैं। मैंने इनकी मीराबाईसे तुलना की है। अपनी इस राय में परिवर्तन करनेका मुझे कोई कारण नहीं मिला । वे तुम्हें और तुम्हारा कुटुम्बको मेरा प्रेम-सन्देश देंगी ।

तुम्हारा
, भाई

[ पुनश्चः ]

'यंग इंडिया' के लिए कुछ लिखोगे ? मैं चाहता हूँ कि कुछ लिखो । {{Left|[ अंग्रेजीसे ]}

महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे ।
सौजन्य : नारायण देसाई

३१५. पत्र : वी० एस० श्रीनिवास शास्त्रीको

[ बम्बई]
जून ६, १९१९

भाई श्री शास्त्रियर,

मेरी प्रार्थना है कि 'यंग इंडिया' के अग्रलेखोंपर आप दृष्टिपात करते रहें । अधिकांश अग्रलेख मेरे लिखे हुए होते हैं या मेरी देखरेखमें लिखे जाते हैं । उसमें लिखी गई सभी बातोंकी सचाईके बारेमें में विश्वास दिला सकता हूँ । उसमें जो स्थिति बतलाई जाती है, वह अधिकारियोंके रवैयेकी वास्तविकता प्रकट कर देती है । रौलट कानून उसका मूर्त रूप है । इसलिए उसके विरुद्ध मेरा विरोध अटल है । क्रान्तिकारी अपराधोंका उन्मूलन करनेके लिए सरकारको इस कानूनकी जरूरत नहीं। लोगोंको तंग करनेके लिए ही उसे इस कानूनकी जरूरत है। भारत-रक्षा कानूनपर जिस तरह अमल हुआ, उससे साबित होता है कि लोगोंको किस हदतक तंग किया जा सकता है । ये कानून जबतक रद न हो जायें, तबतक भारत में शान्ति नहीं हो सकती, नहीं होगी । मिस्टर मॉण्टेग्युकी सफाई सिद्ध नहीं हो सकती । श्री हॉर्निमैनके सम्बन्धमें उन्होंने जो बातें कहीं हैं वे अन्यायपूर्ण और गलत हैं। पंजाब के अत्याचारोंने कविको क्रोधसे तिलमिलाकर एक पत्र[१]लिखनेको विवश कर दिया । मेरी अपनी राय यह है कि यह पत्र समयसे पहले लिखा गया है । परन्तु इसके

 
  1. रवीन्द्रनाथ ठाकुर द्वारा 'सर' का खिताब वापस करते हुए वाइसरायको लिखा गया पत्र जो यंग इंडिया में ७-६ - १९१९ को प्रकाशित हुआ था ।