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लिए कविको दोष नहीं दिया जा सकता । असन्तोषके जो सच्चे कारण हैं, जबतक उन्हें दूर करके लोगोंको सन्तुष्ट न किया जायगा, तबतक आप और दूसरे मित्र सुधार स्वीकार करनेसे इनकार करेंगे, क्या में ऐसी आशा रखूं ?

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

[ पुनश्च: ]

मुझे उम्मीद है कि सफरसे आपको लाभ हुआ होगा ।

[ अंग्रेजीसे ]
महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे ।
सौजन्य : नारायण देसाई

३१६. पत्र : मगनलाल गांधीको

बम्बई
शुक्रवार [ जून ६, १९१९][१]

चि० मगनलाल,

तुम्हारा पत्र मिला । तुम्हें बीजापुरके पतेपर लिखे दो पत्र मिल गये होंगे। स्त्रियों अथवा पुरुषोंको घबराना नहीं चाहिए । हम आश्रममें हाथके कते सूतके कपड़े बुनेंगे । लेकिन जबतक उसमें से पहनने योग्य धोतियाँ अथवा साड़ियाँ नहीं बना सकते तबतक हम उन्हें मिलके बने सूतसे बाहरसे बनवा लिया करेंगे । उद्देश्य यह है कि आश्रमवासी अपना समय मिलके बने सूतको बुननेमें खर्च न करें। हम पहननेके वस्त्रमें भी जितनी जल्दी हो सके उतनी जल्दी हाथके बने सूतका उपयोग करने लगें-हमारी यह इच्छा ऊपर जो कहा गया है उसे करनेपर ही सफल होगी । यह तो मैं लिख ही चुका हूँ कि हम बुआजीको घरकी मरम्मत करवाने के लिए पैसा नहीं दे सकते ।

बच्चे अपने नन्हें-नन्हें हाथोंसे अच्छेसे अच्छा सूत कात सकेंगे, इसमें मुझे तो तनिक भी शंका नहीं । इस बातकी ओर ध्यान देना कि सब कोई इसे जल्द से जल्द सीख ले । मैं तो यही कहूँगा कि अगर रणछोड़भाईको एक निश्चित वेतन मिलने लगे तो फिर उन्हें कमीशन नहीं लेना चाहिए। अभी तक [ इस सम्बन्धमें ] वे क्या मानते रहे हैं, यह में तो कुछ जानता नहीं । इस सवालको निपटाने के लिए तुम्हें जो उचित जान पड़े, सो करना । इसके बाद अब यदि वे ऊपर लिखे अनुसार न करें तो मुझे लगता है कि उन्हें वहाँका काम छोड़ना पड़ेगा। मेरी दृढ़ धारणा है कि यदि रणछोड़भाई व्यापारिक दृष्टिसे काम करते हैं तो हम [ उसमें ] सार्वजनिक पैसेका उपयोग नहीं कर सकते। यदि उन्हें आजी- विकाके सिवा कुछ पैसा कमाना हो तो वे स्वतन्त्र रूपसे काम करें। हम अपनी जरूरतका

 
  1. लगता है यह " पत्र : मगनलाल गांधीको", १-६-१९१९ में उल्लिखित मगनलालकी बीजापुर-यात्राके कुछ दिनों बाद लिखा गया होगा ।