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श्री एन्ड्रयूजकी अपील

सूत खरीद लेंगे । गंगाबेनके साथ क्या बात हुई है ? गंगाबेनके साथ मैंने ऐसी कोई बात की हो- ऐसा मुझे तो याद नहीं आता । वे तो केवल परोपकारकी भावनासे काम करती । यह मैं जरूर चाहता हूँ कि वे अपनी गुजर करने भरका पैसा उसमें से लें । लेकिन वे उतना भी करती हैं या नहीं, सो मैं नहीं जानता ।

भाई मावजीका वेतन अकाल-समितिसे लेना ठीक लगता है । इस सम्बन्धमें वल्लभभाई अथवा भाई इन्दुलाल जो कहें सो करना ।

ऐसी व्यवस्था करना जिससे छोटालाल और जगन्नाथ तुरन्त कातना सीख लें । इन दोनोंको तथा मावजीको बुनाईके काममें ही लगाना चाहिए ।

खेती में से तुम आश्रमका खर्च निकालनेकी इच्छा रखते हो। तो उसके लिए [ खेती- कार्य ] जितना आवश्यक हो उतना ही करना; उससे अधिक नहीं। फिलहाल कातने- बुननेमें ही अधिक से अधिक समय देना अपना कर्त्तव्य मानना । क्योंकि खेतीसे करोड़ों रुपये बाहर नहीं जाते, बुनाईका नाश होनेके कारण ही जाते हैं। बुनाई कामके नष्ट हो जानेके कारण केवल गत वर्ष ही सात करोड़ रुपये विदेशोंको गये। हम खेतीके धन्धेको निकाल बाहर नहीं करना चाहते, इतना ही नहीं; हम उसका सुधार और विकास भी करना चाहते हैं । लेकिन दो काम एक साथ नहीं हो सकते । इसलिए इस समय उसे करना ही ठीक है जो ज्यादा जरूरी है। फिर भी, हमें नुकसान न हो इस सीमाके भीतर मजदूरोंको रखकर जितनी खेती करवायी जा सकती है उतनी जरूर करो । उसके लिए बच्चोंका थोड़ा समय लो। उम्मीद है, तुम मेरी बातको समझ गये होगे । हमें पैसेकी भी दिक्कत रहेगी। अल्प प्रयाससे जितना मिल सके, मैं उतना ही पैसा माँग सकता हूँ । मुझे तो बुनाईके काममें हमने जो परिवर्तन किये हैं वे बहुत अच्छे लगते हैं। इससे हम काफी हदतक पैसेकी खटपटसे भी छूट जायेंगे ।

बापूके आशीर्वाद

मूल गुजराती पत्र (एस० एन० ७३२६) की फोटो नकलसे ।

३१७. श्री एन्ड्रयूजकी अपील[१]

जून ७, १९१९

श्री एन्ड्रयूजने पंजाबके कैदियोंकी ओरसे जो अपील की है उसपर यदि जनता कुछ करना चाहे तो स्पष्ट ही उसमें कुछ बाधाएँ हैं । मार्शल लॉ की अदालतोंके फैसलोंके विरुद्ध सामान्यतः प्रिवी कौंसिलमें अपील नहीं की जा सकती। हमें एक प्रमुख वकीलसे मालूम हुआ है कि ऐसी अदालतसे सजा पानेवाला कैदी सपरिषद् बादशाहसे अपील कर सकता है । और बादशाह प्रिवी कौंसिलकी न्याय समितिको मार्शल लॉ अदालतकी कार्रवाईपर पुन: विचार करनेके लिए कह सकता है । बादशाहको मन्त्री ही सलाह देते हैं । इसलिए पहली

 
  1. यह ७-६-१९१९ के यंग इंडियामें एक सम्पादकीय टिप्पणीके रूपमें छपा था ।.