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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कार्रवाईका रूप राजनैतिक ही होना है; दूसरे शब्दोंमें, सपरिषद् बादशाहके फैसलेपर, पहले तो जो कुछ वाइसराय कहेगा उसीका प्रभाव पड़ेगा । इसलिए परमश्रेष्ठ वाइसराय महोदय से ऐसी जाँच समिति नियुक्त करनेके लिए अनुरोध करना ज्यादा अच्छा है, जिसे मार्शल लॉ की अदालत द्वारा दी गई सजाओंको बदलनेका हक हो । सम्बन्धित कैदी ही सपरिषद् बादशाहको अर्जी दे सकते हैं और जनता वाइसरायको अपील भेज सकती है। इसलिए यह दूसरी कार्रवाई अपेक्षाकृत हर तरहसे जल्दी भी की जा सकती है और वह अधिक प्रभावकारी भी होगी; हालाँकि पहली कार्रवाई सफल हो जाये तो निःसन्देह् अधिक महत्त्वपूर्ण होगी, क्योंकि इस हालत में जो संस्था मामलोंकी जाँच करेगी वह बहुत गरिमामय संस्था है और उसकी अपनी विशिष्ट परम्पराएँ हैं । चाहे कोई भी तरीका अपनाया जाये, इस कठिनाईका कोई हल निकालना और मार्शल लॉ के अन्तर्गत किये गये कार्योंकी उचित रूपसे जाँच-पड़ताल कराना सभीके हितकी बात है । श्री मॉण्टेग्युने भी, लगता है, ऐसा करनेका वचन दिया है । जनताको यह ध्यान रखना है कि जो कुछ दिया जाये, वह वस्तुतः एक निष्पक्ष और प्रातिनिधिक जाँच समिति हो, न कि ऐसे लोगोंसे बनी हुई लीपापोती करनेवाली समिति, जिसमें जनताका विश्वास न हो ।

अंग्रेजी (एस० एन० ६७२४) की फोटो नकलसे ।

३१८. श्री हॉर्निमैन

पिछले अंकमें[१]हमने कहा था कि केन्द्रसे न्याय पाना कठिन है और यह भी कहा था कि इस कठिनाईका कारण यह है कि वास्तवमें पेश किये जानेवाले मामलेके एक ही पक्षका वहाँ प्रतिनिधित्व हो पाता है। श्री मॉण्टेग्युने श्री हॉर्निमैनके बारेमें जो बातें कहीं हैं उनसे हमारे कथनकी सचाई सिद्ध होती है। श्री मॉण्टेग्युने कुछ उक्तियोंको सच मानकर उनके आधारपर श्री हॉर्निमैनके निर्वासनका औचित्य सिद्ध किया है; किन्तु वे उक्तियाँ वस्तुतः सत्य नहीं हैं ।

जब श्री हॉर्निमैन ने वंगेकी अवधि में अपने पत्रका उपयोग आगको भड़काने की दिशामें करना प्रारम्भ किया और इस आशयका आरोप प्रकाशित किया कि ब्रिटिश फौजने दिल्लीमें 'मुलायम नोंककी गोलियाँ' चलाई हैं और जब उनका पत्र बम्बई में ब्रिटिश सैनिकोंमें अनुशासनहीनता फैलानेकी आशासे मुफ्त बाँटा गया तब उनका भारतसे निर्वासन बहुत जरूरी हो गया। यदि सामान्य समय होता तो उनपर मुकदमा चलाया जाता; किन्तु दंगोंका खयाल करके व्यवस्था कायम करनेके लिए तत्काल और त्वरित कार्रवाई करना आवश्यक था ।
 
  1. देखिए "दक्षिण आफ्रिका भारतीय " (इंडियन्स इन साउथ आफ्रिका) शीर्षक अग्रलेख, जो यंग इंडिया ४-६-१९१९ के अंकमें प्रकाशित हुआ था ।