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पत्र : एक युवा पत्रकारको

श्री मॉण्टेग्यूने इन दो वाक्योंमें जितनी गलतबयानियाँ भर दी हैं, उनसे अधिक तो दो वाक्यों में भरी ही नहीं जा सकती थीं। बम्बई में कोई दंगा नहीं हुआ, उन्होंने कभी आग नहीं भड़काई, बल्कि जब सविनय अवज्ञाके विवेकशून्य ढंगसे प्रयोग किये जानेका खतरा आया तब उन्होंने उसे बन्द कर देनेकी सलाह दी। और जैसा कि श्री मॉण्टेग्युको भेजे श्री जिन्नाके तारसे स्पष्ट है, 'मुलायम नोंककी गोलियाँ' वाली खबर भी वापस ले ली जाती, यदि भूल-सुधारके लिए जो तार भेजा गया था उसे सेंसर भेजने या बिना देरदार किये पहुँचा देने में रुकावट न डालता । अन्तमें, ‘क्रॉनिकल' की प्रतियाँ मुफ्त तो क्या, किसी तरह ब्रिटिश सैनिकोंके बीच नहीं बँटवाई गई और उनसे अनुशासनहीनता फैला सकनेकी आशा करनेका प्रश्न ही नहीं उठता। यदि यह कहा जाये कि श्री मॉण्टेग्युने जब ये गलत बातें कहीं तब वे नहीं जानते थे कि ये बातें गलत हैं, तो भी श्री हॉर्निमैन और बम्बईकी जनताको दी गई सजाकी सख्ती कम नहीं होती। श्री मॉण्टेग्युको अनजाने ही जो घोर असत्य बातें कहनी पड़ी हैं, उनमें परमश्रेष्ठ गवर्नर महोदय, कमसे कम सुधार तो करवा ही सकते हैं, और हमें आशा है कि वे वैसा अवश्य करायेंगे । बम्बईकी जनताका यह स्पष्ट कर्त्तव्य है कि उसके साथ जो अन्याय किया गया है उसका और श्री हॉर्निमैनके विरुद्ध जारी किये गये हुक्मको वापस लेकर जबतक उसका निराकरण नहीं कर दिया जाता तबतक वह सन्तुष्ट होकर नहीं बैठेगी।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, ७-६-१९१९

३१९- पत्र : एक युवा पत्रकारको

बम्बई
जून ७, १९१९

मुझे 'पूज्य पिताजी' कहना खतरनाक है; यह तुम्हें अभी-अभी मालूम हो जायेगा । तुम्हारे आवारापनमें मुझे जरा भी शक नहीं । तुम्हारी अव्यवस्थित लिखावट उसका जीता-जागता सबूत है । पत्र जैसे-तैसे घसीट दिया गया है; उसे दुबारा नहीं देखा गया और पंक्तियाँकी पंक्तियाँ कटी हुई हैं; ऐसा पत्र अपने मान्य किये हुए 'पूज्य पिताजी' को कोई आवारा बेटा ही लिख सकता है। लड़का सचमुच आज्ञापालक हो तो जान-बूझकर स्वीकार किये हुए पिताको जब पत्र लिखेगा, तब खूब ध्यानपूर्वक यथासम्भव सुन्दरसे-सुन्दर अक्षरों में लिखेगा और विशेषण लगाने में कंजूसी करेगा । उसके पास अधिक समय नहीं होगा, तो वह एक लकीर ही लिखेगा, परन्तु लिखेगा बहुत सफाईसे ।

श्री जमनादासके बारेमें तुम्हारा लिखा हुआ लेख जल्दी में लिखा हुआ और अविचारपूर्ण है । 'यंग इंडिया' में तो वह छापा ही नहीं जा सकता पर वह और किसी पत्र में भी छापने लायक नहीं है । इस प्रकारके पत्र लिखकर तुम श्री जमनादासको