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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

नहीं सुधार सकते; साथ ही उससे लोगोंका भी कोई लाभ नहीं हो सकतादूसरा लेख भी वैसा ही है।...अपने शब्दाडम्बरमें तुम अपने-आपको फँसा लेते हो बातका बतंगड़ बनाने के बजाय तुम विचारपर ध्यान दो, तो पढ़ने योग्य चीज पैदा कर सकते हो ।

तुमने अपने प्रमाणपत्र मेरे पास किस लिए भेजे हैं? मुझपर वे क्या असर डाल सकेंगे ? तुम्हें तो मैं अच्छी तरह जानता हूँ । तुम्हें में 'बहुश्रुत' अथवा 'ओजस्वी लेखक नहीं मानता। अगर श्री मेनन सचमुच ही यह समझते हों कि तुम पत्रकारके रूपमें चमक उठोगे, तो पत्रकार कैसा होना चाहिए, इसका उन्हें बहुत थोड़ा ज्ञान होना चाहिए । अब तुम समझ सकोगे कि मुझे रिझाना कितना कठिन काम है । फिर भी यदि भविष्य में तुम अच्छी तरह मेहनत करने को तैयार हो जाओ, तो मुझे रिझाना बहुत आसान भी है । तुम्हारी इतनी अधिक त्रुटियाँ होनेपर भी तुम अहमदाबादकी अपनी जिम्मेदारीसे मुक्त हो जाओ, तो तुम्हें 'यंग इंडिया' में एक सहायकके रूप में ले सकता हूँ। मेरा खयाल है कि श्री चटर्जी और ए० पी० (एसोसिएटेड प्रेस) के प्रति तुम्हारा यह फर्ज है कि इस समय तुम्हारे पास जो काम है, उसे पूरा करो । अहमदाबादमें रहते हुए भी तुम जो मुकदमे वहाँ चल रहे हैं, उनपर सुन्दर और यथातथ्य टिप्पणियाँ भेजकर, मेरी मदद कर सकते हो । परन्तु वह सरकार या स्थानीय वकीलोंके ऐब देखनेवाली आलोचनाओंसे मुक्त होनी चाहिए। तुम्हें व्यक्तियों और उनकी रीतिनीति के शब्द-चित्र देनेका प्रयत्न करना चाहिए। मुकदमोंकी कार्रवाईसे सम्बन्ध रखनेवाले विनोद-प्रसंग तुम जरूर दे सकते हो । किन्तु मेरा खयाल है कि इस समय ऐसा कुछ भी लिखनेका समय तुम शायद ही निकाल सको ।

हृदयसे तुम्हारा,

[ अंग्रेजीसे ]
महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे ।
सौजन्य : नारायण देसाई

३२०. पत्र : छगनलाल गांधीको

बम्बई
जून ७, १९१९

चि० छगनलाल,

तुम्हारा पत्र मिला । मेरी धारणा तो यह है कि कलकत्ता वगैरहसे कोई भी हमारी खादी मँगवानेवाला नहीं है, इक्के-दुक्के मँगानेवाले बम्बई या अहमदाबादसे शायद मँगवा लें । हमारा ५ फी सदी दाम बढ़ाना मुझे तो हरगिज ठीक नहीं लगता । हमें अपनी मेहनत मुफ्त ही देनी चाहिए, तभी हम स्वदेशी-स्टोरसे ५ प्रतिशत मुनाफा लेकर संतुष्ट होनेके लिए कह सकेंगे। नई वस्तुका प्रचार करनेमें हम मुनाफा कैसे लें ? हमें खानेको मिल ही रहा है । बम्बई माल न भेजा हो, तो जबतक में न लिखूं न भेजना ।