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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


उसमें लगन है लेकिन वह अनजान है। उसने अज्ञानमें पैसा उड़ा दिया है । जो सूत काता गया है, वह काममें आ सकता है सो नहीं जान पड़ता । बुनाईका काम हाथमें लेने में अभी समय लगेगा। हमारे पास बहुत सारे देशी करघे होने चाहिए। काठिया- वाड़में तो बहुत होंगे। उमरेठमें भी हैं, यह मैं जानता हूँ । उमरेठके सभी करघे चालू नहीं हुए हैं। वहाँ जो भी काम होता है भाई चन्द्रशंकरको सब बताना । सूत कैसे काता जाता है, यह भी बताना। बादमें बीजापुरका काम देखनेके लिए भेजना। वहाँ देखनेके बाद वे कोटा जायेंगे। मैंने उनको ज्ञान प्राप्त करनेके बाद ही अधिक पैसा खर्च करनेकी सलाह दी है ।

पुराने स्वदेशी भण्डारमें भेजी गई खादी नये में ले जाई गई है। उसके लिए यहाँ नकद पैसा दे दिया जायेगा। इसके सिवा दूसरा पैसा भी चुका दिया जायेगा । सब मिलाकर १०,००० रुपया भर दिया जायेगा । जो माल अभी वहाँ पड़ा है उसे बाँधकर एक तरफ रख दोगे तो चलेगा। वे कहते हैं कि यहाँके भण्डारमें सारा माल रेखनेकी व्यवस्था नहीं है इसलिए वहीं सहेजकर रखो। कितना माल है और क्या- क्या है, उसका बीजक बनाकर मुझे भेज देना । वह में भाई विट्ठलदासको दे दूँगा । इस मालको बादमें तुम बेच नहीं सकोगे। हाथके कते हुए सूतका और हाथका बुना हुआ, सं० १; हाथके कते सूतका बाना और मिलका ताना, सं० २; तथा मिलका ही बाना और ताना, सं० ३ - इस तरह पचियाँ चिपकाकर, और कौन कितने गज है, इत्यादि लिखकर मालकी गाँठ तैयार करना । जितना माल हम तैयार करेंगे, उतना सब वे ले लेंगे। मैं समझता हूँ कि सं० ३का माल तो अब हमें नया तैयार करवाना ही नहीं चाहिए। जिस भाव हम देंगे, भाई विट्ठलदास उसी भाव बेचनेको तैयार हैं । वे उसके ऊपर एक पाई भी मुनाफा नहीं कमाना चाहते। दूसरे मालपर भी सिर्फ पाँच प्रतिशत मुनाफा लेंगे। हमें भी [ कीमतमें] मुनाफा बिलकुल नहीं जोड़ना चाहिए । इसी तरह हम शुद्ध स्वदेशीका प्रचार कर सकेंगे। भाई विट्ठलदासकी यह भी इच्छा है कि चोलियोंके लिए भी कुछ खादी रँगायी जाये। यह सब व्यवस्था होनेके बावजूद क्या तुम वहाँसे सीधे माल बेचनेकी आवश्यकता महसूस करते हो ? भाई विट्ठलदासने पुरानी दुकानके व्यवस्थापकसे यह बात कहनेकी जिम्मेदारी अपने सिरपर ली है कि वे खादीके अलावा अन्य मालके पैसे [ तुम्हें ] सीधे भेज दें ।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती पत्र (एस० एन० ७०२१) की फोटो - नकलसे ।