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बाबू कालीनाथ राय

बाबू कालीनाथ रायके मामलेसे स्थिति बहुत अलग है । मेरी नम्र सम्मतिमें 'यंग इंडिया' स्पष्ट ही एक निर्भय अन्यायके मामलेको लोगोंके सामने उपस्थित कर रहा है । मुझे बाबू कालीनाथ रायको व्यक्तिशः जाननेका सौभाग्य प्राप्त नहीं है, जब मैंने [ उनके मामलेके ] फैसलेका अध्ययन प्रारम्भ किया तब यही सोचा था कि अभियुक्त के विरुद्ध उसके लेखनके छुट-पुट अंशोंके आधारपर कोई ऐसा मामला तो अवश्य तैयार किया ही गया होगा जो कमसे कम ऊपरी तौरपर सही मालूम हो । लेकिन जैसे-जैसे मैं फैसलोंको पढ़ता गया, वैसे-वैसे मैं इस निष्कर्षपर पहुँचता गया कि यह तो एक अभियोग और उसपर दी गई कड़ी सजाको सिद्ध करनेके लिए रखी गई एक खास किस्मकी दलील भी है। इस खयालसे कि हो सकता है, मेरा सोचना गलत हो, मैंने 'ट्रिब्यून' के उन अंकोंको देखा जिनका फैसलेमें उल्लेख किया गया था और जिनके आधार पर भारतीय दण्ड विधानके खण्ड १२४ (क) के अन्तर्गत बाबू कालीनाथ रायपर यह गम्भीर आरोप लगाया गया था। लेकिन 'ट्रिब्यून के एक-एक सम्बन्धित लेखको ध्यानसे पढ़नेका परिणाम सिर्फ यह हुआ कि फैसलेको देखकर मैंने जो धारणा बनाई थी, वह बिलकुल पक्की हो गई । और अन्तमें मुझे यह मानना पड़ा कि सैनिक कानूनके अन्तर्गत स्थापित न्यायालयने, जिस सन्देह और अविश्वासके वातावरणसे वह घिरा हुआ है, उससे प्रभावित होकर ही निर्णय दिया है । मैं जो कुछ कह रहा हूँ उसको सिद्ध करनेवाले सबसे अच्छे प्रमाण तो स्वयं यह निर्णय और वे लेख हैं, जिनपर यह आधारित है । अतः उन्हें इस अंकमें पूराका पूरा प्रकाशित किया जा रहा है। मैंने, निर्णय और 'ट्रिब्यून 'में प्रकाशित जिन लेखोंको अपराध माना गया है, उन लेखोंसे पहले दूसरे अंकोंके सम्बन्धित वे अंश भी दे दिये हैं, जिनसे दिल्लीके काण्डके शीघ्र बाद अप्रैल महीनेसे ऐसे लेखनका जो सिलसिला आरम्भ हुआ उसकी प्रवृत्ति और ध्वनि स्पष्ट हो जाती है । वे ऐसे अंश नहीं हैं, जिन्हें सन्दर्भमें से अलग करके रखा गया है । वास्तवमें वे पिछले ३० मार्चके बादसे प्रकाशित 'ट्रिब्यून' के सभी अंकोंकी सम्बन्धित सामग्रीका एक सच्चा चित्र प्रस्तुत करते हैं। सभी अंकोंमें प्रमुख स्वर यही है कि रौलट कानूनोंके विरुद्ध जो आन्दोलन किया जा रहा है उसे संयम, सत्य और अहिंसासे चलाया जाय । में उनमें कहीं भी वैर-विद्वेषके भावका चिह्न नहीं देख पाया - चाहे वह वैर-विद्वेष सामान्य रूपसे अंग्रेजोंके विरुद्ध हो या विशिष्ट रूपसे अंग्रेज सरकारके विरुद्ध । सच तो यह है कि दिल्ली-काण्डके परिणामस्वरूप उत्पन्न स्थितिमें 'ट्रिव्यून'ने जिस शान्ति और आत्म-संयमसे काम लिया उससे अधिक शान्ति और आत्म- संयम कोई मुश्किलसे ही दिखा सकता है। यह है :

इस विशेष अदालतने अपने मार्ग-दर्शनके लिए जो कसौटी सामने रखी है:

आपको देखना होगा कि जो घटनाएँ घटित हुई हैं उनपर इस प्रकाशित सामग्रीमें शान्तिपूर्ण और संयमित ढंगसे विचार किया गया है या नहीं। जनताको जिन बातोंकी शिकायत हो उनके सम्बन्धमें विचार-विमर्श करनेका उसे अधिकार है; लेकिन उसे इतना ध्यान तो रखना ही है कि वह इस ढंगसे