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बाबू कालीनाथ राय


शब्दका प्रयोग किया। जिस लेखमें ६ अप्रैलके प्रदर्शनका वर्णन किया गया था, उसमें कहा गया था कि :

भारतकी जनता बेवकूफ नहीं है ।... उसे 'उल्लू नहीं बनाया जा सकता' यह बात तो उन कुछ एक म्यूनिसिपल कमिश्नरों, अवैतनिक मजिस्ट्रेटों और कुछ दूसरे लोगों की शर्मनाक नाकामीसे ही साफ हो जाती है, जिन्होंने दुकानदारोंको अपनी दुकानें खुली रखनेकी बात समझाते हुए सारे नगरका चक्कर लगा डाला था ।

यह तो अभियुक्त, जिस रूपमें तथ्यको जानता था, उसकी विवृत्तिमात्र है । इसके बाद उन लेखोंपर विचार किया गया है जिनके आधारपर सम्पादकपर मुख्य रूपसे यह आरोप लगाया गया है कि उसने कहा कि पंजाब सरकारकी कार्रवाई “अन्यायपूर्ण भी थी और अनावश्यक भी", और" उसने अपने-आपको जनमतकी कड़ीसे कड़ी आलोचनाका पात्र बना" लिया है । यहाँ भी सम्पादकने अपने पाठकोंको तर्क देकर उसी निष्कर्ष- पर लानेकी कोशिश की है जिसपर वह स्वयं पहुँचा है । यह प्रक्रिया, स्वयं अदालतने अपने सामने जो कसौटी स्वीकार की है, उसके आधारपर बिलकुल उचित ठहरती है । बात सचमुच अनुचित तब होती, जब सम्पादकने तथ्योंको गलत रूपमें पेश किया होता । लेकिन, जैसा कि इस अंकमें उद्धृत किये गये लेखोंसे स्पष्ट होगा, लेखकने हर मामले में, जिन बातोंको वह तथ्य समझता है, उनका सहारा लेकर अपनी स्थिति पूरी तरह सुदृढ़ रखी है, और जहाँतक फैसलेको देखनेसे ज्ञात होता है, उसमें उन तथ्योंका खण्डन भी नहीं किया गया है । अदालतने इनके अतिरिक्त जिन दो लेखोंका उल्लेख किया है, वे हैं ९ तारीखके अंकमें प्रकाशित दिल्लीकी दुःखद घटना और १० अप्रैलके अंकमें छपा घोर विवेकहीनता। "दिल्लीकी दुःखद घटना" में ३० मार्चकी दुःखद घटना निष्पक्ष दृष्टिसे विवेचित है, और अन्तमें भारत सरकारसे मामलेकी खुली जाँच करनेकी माँग की गई है। “घोर विवेकहीनता,” निःसन्देह सर माइकेल ओ'डायरपर, पंजाब विधान परिषद् के समक्ष उन्होंने जो भाषण दिया, उसको लेकर लगाया गया एक आरोप है । सम्बन्धित लेखमें जिस भाषणपर विचार किया गया है, वह निश्चय ही " घोर विवेकहीनता "से भी बढ़कर है। सच तो यह है कि कालीनाथ रायके बजाय मुजरिमके कठघरेमें सर माइकेल ओ'डायरको खड़ा किया जाना चाहिए था। अगर उन्होंने उत्तेजनात्मक और क्षोभकारी भाषण न दिये होते, यदि उन्होंने नेताओंका अपमान न किया होता, यदि उन्होंने बड़ी ही बेरहमीसे लोकमतका तिरस्कार न किया होता और अगर उन्होंने डॉ० किचलू और डॉ० सत्यपालको गिरफ्तार न किया होता तो पिछले दो महीनोंका इतिहास कुछ और ही होता । लेकिन, मेरा उद्देश्य सर माइकेल ओ'डायरको दोषी सिद्ध करना नहीं है । मैं तो सिर्फ बाबू कालीनाथ रायकी पूर्ण निर्दोषिता साबित करना चाहता हूँ और दिखाना चाहता हूँ कि ब्रिटिश न्यायके नाम- पर उन्हें एक घोर अन्याय सहना पड़ा है, और जैसे मैं अपने देशभाइयोंसे अनुरोध करता हूँ, वैसे ही बिना किसी संकोचके अंग्रेजोंसे भी कहता हूँ कि वे मेरे साथ मिलकर बाबू कालीनाथ रायकी तत्काल रिहाईके लिए ईश्वरसे प्रार्थना करें। जैसा कि

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