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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


श्री नॉर्टनने, और अभी हालमें सर पी० एस० शिवस्वामीने भी, दिखा दिया है, मार्शल लॉ अदालत के बारेमें ऐसा नहीं सोचा गया था कि उसमें ऐसे मामलोंकी सुनवाई होगी जिनका सम्बन्ध सामान्य कानूनोंके कठिन खण्डोंकी बहुत ही नाजुक व्याख्यासे हो। ऐसी अदालतें तो केवल उन लोगोंके मामलोंको औचित्यपूर्ण फौरी तौरपर निबटा देनेके लिए स्थापित की जाती हैं जिन्हें ऐसे द्रोहात्मक अथवा अपराधपूर्ण कार्य करते हुए मौकेपर ही पकड़ लिया गया हो, और जिन्हें यदि रोका न जाये तो समाजमें घोर अव्यवस्था फैल जाये ।

अब एक और बात विचार करनेके लिए बच रहती है। जब इस बातकी बहुत अधिक सम्भावना है कि पंजाब में मार्शल लॉके अमलकी पूरी जाँच-पड़ताल करने और इस नियम के अन्तर्गत स्थापित अदालतों द्वारा दी गई सजाओंपर पुनः विचार करनेके लिए एक स्वतन्त्र और निष्पक्ष समिति नियुक्ति की जायेगी तब फिर इस एक माम- लेको ही अलगसे निबटानेके लिए क्यों चुन लिया गया था ? मेरा उत्तर यह है कि श्री रायके मामलेमें किसी प्रकारके भ्रमकी गुंजाइश है ही नहीं। यह मामला ऐसा है जिसपर सरकारको तत्काल विचार करना चाहिए और जिन लेखोंके आधारपर श्री रायके विरुद्ध आरोप लगाये गये हैं, वे यदि राजद्रोहात्मक न पाये जायें- और मेरा ख्याल है, वे ऐसे कदापि सिद्ध नहीं होंगे - तो उन्हें तुरन्त रिहा कर देना चाहिए । इसके अतिरिक्त इस मामलेमें समयका भी बड़ा महत्त्व है, क्योंकि जैसा श्री एन्ड्रयूज बताया है, श्री राय शरीरसे बड़े दुर्बल व्यक्ति हैं ।

गांधी

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, ११-६-१९१९

३२७. ज्ञापन : वाइसरायको[१]

बम्बई
[जून ११, १९१९]

हम, नीचे हस्ताक्षर करनेवाले बम्बई अहातेके नागरिक परमश्रेष्ठसे विनीत प्रार्थना करते हैं कि परमश्रेष्ठ कृपा करके अपने विशेषाधिकारका प्रयोग करें और लाहौरके 'ट्रिब्यून' पत्रके भूतपूर्व सम्पादक बाबू कालीनाथ रायको, जिन्हें मार्शल लॉ कमीशनने राजद्रोहात्मक लेख लिखनेके अपराधमें भारतीय दण्ड संहिताकी धारा १२४के अन्तर्गत

 
  1. बम्बई के नागरिकोंकी ओरसे प्रस्तुत इस ज्ञापनपर हस्ताक्षर करनेवालोंमें अन्य लोगोंके अतिरिक्त गांधीजी, सर नारायण जी० चन्दावरकर, सर दिनशा वाछा, जी० के० पारेख, के० नटराजन तथा कुछ अन्य लोगों के हस्ताक्षर थे। गांधीजीने यह वाइसरायको २७ जून, १९१९ को भेजा था। देखिए "पत्र : एस० आर० हिगनेलको", २७-६-१९१९ ।