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ज्ञापन : वाइसरायको


दो वर्षकी कड़ी कैद एवं १,००० रुपये जुर्मानेकी या जुर्माना न देनेपर छः मासकी अतिरिक्त कड़ी कैदकी सजा दी है, जेलसे रिहा करनेका निर्देश दें।

प्रार्थी अपनी इस प्रार्थनामें इस मामलेपर कमीशनके फैसलेके कानूनी गुणाव-गुणोंकी चर्चा करना नहीं चाहते। हाँ, वे उन कारणोंको अवश्य प्रस्तुत कर रहे हैं जो विशेषाधिकारके प्रयोगकी प्रार्थनासे सर्वथा समुचित रूपसे सम्बद्ध हैं ।

पहला कारण यह है कि 'ट्रिब्यून' के उन लेखोंमें जो राजद्रोहात्मक बताये गये हैं और जिन्हें कमीशनने भी ऐसा माना है, कोई भी ऐसा शब्द नहीं है जिससे अभक्ति प्रकट होती हो या जिससे हिंसा, अराजकता या विद्रोहको बढ़ावा मिलता हो । उनमें पंजाब सरकारके कुछ कार्योकी आलोचना-भर की गई है; इस आलोचनाका उद्देश्य स्पष्टतः सरकार द्वारा मामलेकी निष्पक्ष जाँच कराना था । इसलिए कमीशन द्वारा इन लेखोंके राजद्रोहात्मक माने जानेका एकमात्र औचित्य राजद्रोहसे सम्बन्धित कानूनके इस विधानमें ही मिल सकता है कि कोई शब्द या रचना इतनी राजद्रोहात्मक है या नहीं कि उससे शान्तिको खतरा पैदा हो सकता है. यह बात उस समयकी परिस्थितियोंपर निर्भर करती है जिस समय ऐसे शब्द या रचनाएँ प्रकाशित की जाती हैं। राजद्रोह कानून (कुछ प्रमुख अंग्रेज विधि-शास्त्रियों और वकीलोंके कथनानुसार) इस कानूनी सिद्धान्तसे इतना अनिश्चित हो जाता है कि उसमें निर्दोष पत्रकार भी फँस सकते हैं और सरकारके कार्य-विशेषकी उचित या अनुचित आलोचना तथा उसपर जान-बूझकर ऐसे प्रहार करनेमें, जिनसे शान्ति खतरे में पड़ जाये, जो भेद है, वह भेद समाप्त हो जाता है ।

इस कारण वे प्रार्थीगण श्री रायके पक्षमें इतना और कहना चाहते हैं कि (१) वे अपने सम्पादन - कालमें 'ट्रिब्यून' में आम तौरपर संयत लेख लिखते रहे हैं; (२) उनकी तन्दुरुस्ती बहुत खराब है और उसपर उनकी लम्बी कँदका असर बुरा हो सकता है। और (३) वे अपने मुकदमेसे पहले आयोगके सम्मुख खेद प्रकाश भी कर चुके हैं।

[ अंग्रेजीसे ]

यंग इंडिया, २५-६-१९१९