पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 15.pdf/४०४

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३३०. पत्र : सी० एफ० एन्ड्रयूजको

जून ११, १९१९

अभी तो किसी वकीलने यह उम्मीद नहीं बँधाई है कि प्रिवी कौंसिलमें सफलता मिल जायेगी । हम उचित ढंगसे लोकमत तैयार करके काली बाबूको रिहा करा सकते हैं। मेरा सुझाव है कि आप कलकत्ता और अन्य स्थानोंमें जाकर, दयाके आधारपर नहीं, बल्कि न्याय, केवल न्यायके आधारपर उनकी रिहाईके आन्दोलनके समर्थन में लोगों से हस्ताक्षर माँगें और उनसे सार्वजनिक सभा आदि करनेको कहें। मेरी तो यह सलाह भी है कि आप कलकत्ताके बिशप और अन्य अंग्रेजोंसे मिलकर उनसे भी इसमें शामिल होनेका अनुरोध करें। में नहीं चाहता कि आप स्थानीय लोगोंमें-चाहे वे अधिकारी-वर्गके हों या आम लोग-अपना विश्वास खो दें। दूसरे आन्दोलन चाहे जैसे चलाये जाते हों, इस प्रकारके आन्दोलनको चलानेका कोई दूसरा मार्ग नहीं है । यदि प्रिवी कौंसिलका फैसला हमारे खिलाफ भी निकले तो क्या होता है ? जो लोग मेब्रुके दुष्कर्मोंसे सहमत नहीं थे वे मामलेको प्रिवी कौंसिलमें नहीं ले गये; बल्कि उन्होंने अपने पक्षमें प्रबल लोकमत तैयार करके गृहमन्त्रीको कार्रवाईके लिए बाध्य किया ।

तुम्हारा,
मोहन

[ पुनश्चः ]
सुझाव रुद्रके पत्रमें दिये गये हैं ।
अंग्रेजी (एस० एन० ६६४५ ) की फोटो नकलसे ।
 

३३१. पत्र : एन० पी० कॉवीको

अहमदाबाद
[ जून ११, १९१९ के बाद ]

प्रिय श्री कॉवी,

मैं परमश्रेष्ठको अपने गत २० अप्रैलके स्वदेशी सम्बन्धी पत्रकी याद दिलानेकी धृष्टता कर रहा हूँ । उसके बादसे इस आन्दोलनमें बहुत प्रगति हुई है और यदि परम- श्रेष्ठसे सहानुभूतिके दो शब्द मिल जायें तो वह इस आन्दोलनको बढ़ाने में अत्यन्त मूल्यवान सिद्ध होंगे । इस सिलसिले में मैं परमश्रेष्ठका ध्यान मुझे भेजे गए सर स्टैनली रीडके पत्रकी[१] ओर भी खींचना चाहूँगा । यह ११ जून, १९१९के 'यंग इंडिया ' में छपा है ।

 
  1. देखिए परिशिष्ट ४ ।