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३३५. पत्र : मगनलाल गांधीको

बम्बई
बृहस्पतिवार [ जून १२, १९१९][१]

चि० मगनलाल,

तुम्हारा दूसरा पत्र मिला है ।

चि० सामलदास वहाँ आयेगा । आज राजकोट जा रहा है । वहाँ दो दिन रुककर आश्रम आयेगा । उसका वेतन निश्चितं नहीं किया है। उसे अभी तो काम सौंपना, एक दूसरेका अनुभव लेना और फिर उसका वेतन नियत करना । छोटे-मोटे दूसरे बहुतसे काम वहाँ हैं, यह मैं जानता हूँ । उनमें से निकलकर मुख्य वस्तुको पहचान लेना - इसीको मैं सच्ची लगन कहता हूँ । वह [ किसीके ] देनेसे नहीं आती । जिस व्यक्तिको एक बार लगन लग जाती है उसे फिर कुछ और सूझता ही नहीं है ।

भाई नरहरिने अनुवाद करनेसे इनकार किया, सो ठीक ही किया । करघेके पीछे जब हम पागल हो जायेंगे तभी हमें सफलता मिलेगी । अनुवादके लिए वहाँ भेजने की बात मैंने ही कही थी लेकिन सूत [ कातने और बुनने ] के पीछे वे भले ही दूसरे सब काम न करें ।

इमाम साहबकी सार-सँभाल कौन करेगा ? दुर्गाबह्नकी कमर में फिरसे दर्द होने लगा है। उसका इलाज कूने स्नान और सादा भोजनसे ज्यादा अच्छा और कुछ नहीं है । मैं उन्हें मथुरा भेजनेका बन्दोबस्त करूँगा ।

बापूके आशीर्वाद

मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ५७७० ) से ।
सौजन्य : राधावेन चौधरी
 
  1. यह पत्र स्पष्टतः “पत्र : मगनलालको", १५-६-१९१९ के पहले लिखा गया था, क्योंकि उसमें गांधीजीने उसी तारीखको सामलदासके अहमदाबाद पहुँचनेकी चर्चा की है ।