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पत्र : ई० एस० मॉण्टेग्युको

मैं आपको विश्वास दिलाना चाहूँगा कि मैंने काम अधिकसे-अधिक विचार और उत्तरदायित्वकी उचित भावनासे किया है । मुझे इस बातका कोई अन्दाज ही नहीं था कि सरकारके विरुद्ध क्रोध इतना विस्तृत और गम्भीर रूप धारण कर चुका है। रविवारके प्रदर्शन और उपवासका सुझाव देते समय मैंने सोचा था कि अधिकतर लोग पागल समझकर मुझपर हँसेंगे। परन्तु क्रुद्ध जनता की धार्मिक कल्पनापर इस विचारका असर पड़ा। उसने सोचा कि उद्धार किसी ऐसे प्रदर्शनात्मक और पवित्र कार्य द्वारा ही होगा। मैंने इस सार्वभौमिक अनुकूल प्रतिक्रियाकी आशा नहीं की थी, उसी तरह जैसे मैंने दिल्लीमें गोलीबारी (जो मेरी राय में सर्वथा अनावश्यक थी) और उससे भी ज्यादा अपनी गिरफ्तारी और निर्वासन और नजरबन्दी आदिके हुक्मोंकी आशा नहीं की थी। मैं सविनय अवज्ञा करनेके इरादेसे दिल्ली नहीं जा रहा था; बल्कि दिल्लीके नेताओंके बुलानेपर वहाँकी आम जनताको शान्त करनेके लिए जा रहा था; और वहाँसे इसी कामके लिए मुझे पंजाब जाना था। डॉक्टर सत्यपाल और डॉक्टर किचलूकी गिरफ्तारी भयानक भूल थी । मेरे पास पंजाब सरकारको इतना पागल अथवा भारत सरकारको इतना कमजोर माननेका कोई कारण

मैं आपको विश्वास दिलाना चाहूँगा कि मैंने काम अधिकसे-अधिक विचार और उत्तरदायित्वकी उचित भावनासे किया है । मुझे इस बातका कोई अन्दाज ही नहीं था कि सरकारके विरुद्ध क्रोध इतना विस्तृत और गम्भीर रूप धारण कर चुका है। रविवारके प्रदर्शन और उपवासका सुझाव देते समय मैंने सोचा था कि अधिकतर लोग पागल समझकर मुझपर हँसेंगे। परन्तु क्रुद्ध जनता की धार्मिक कल्पनापर इस विचारका असर पड़ा। उसने सोचा कि उद्धार किसी ऐसे प्रदर्शनात्मक और पवित्र कार्य द्वारा ही होगा। मैंने इस सार्वभौमिक अनुकूल प्रतिक्रियाकी आशा नहीं की थी, उसी तरह जैसे मैंने दिल्लीमें गोलीबारी (जो मेरी राय में सर्वथा अनावश्यक थी) और उससे भी ज्यादा अपनी गिरफ्तारी और निर्वासन और नजरबन्दी आदिके हुक्मोंकी आशा नहीं की थी। मैं सविनय अवज्ञा करनेके इरादेसे दिल्ली नहीं जा रहा था; बल्कि दिल्लीके नेताओंके बुलानेपर वहाँकी आम जनताको शान्त करनेके लिए जा रहा था; और वहाँसे इसी कामके लिए मुझे पंजाब जाना था। डॉक्टर सत्यपाल और डॉक्टर किचलूकी गिरफ्तारी भयानक भूल थी । मेरे पास पंजाब सरकारको इतना पागल अथवा भारत सरकारको इतना कमजोर माननेका कोई कारण नहीं था, कि मैं सोचता कि ऐसे कदम उठाये जायेंगे । पागलपन या कमजोरीके सिवा इन कदमोंके उठाये जानेका कोई सबब ही नहीं हो सकता। दोनों ही सरकारें जानती थीं कि मैं शांति स्थापनाके उद्देश्यसे जा रहा था और दोनोंको ज्ञात होना चाहिए था कि उक्त दोनों डॉक्टरोंकी और मेरी गिरफ्तारी जरूर उस जनताको उत्तेजित करेगी जो कि दिल्ली और अमृतसरमें अधिकारियोंके कामोंसे पहले ही से क्षुब्ध है । आप विश्वास करें, यदि ये भारी भूलें न हुई होतीं तो जनताकी भीड़ने जो भयानक कृत्य किये, वे न हुए होते। अहमदाबादकी उत्तेजनाका कारण मुख्यतः व्यक्तिगत था । लोग मेरी और अनसूयाबेन की गिरफ्तारीकी अफवाह सुनकर अपनेको जब्त नहीं कर सके ।

जो भी हो, मैंने लोगोंके जघन्य कुकृत्योंकी मुनासिब जिम्मेदारी स्वीकार कर ली है । परन्तु अपने मत और उसका प्रचार करनेके बारेमें मुझे कोई पश्चात्ताप नहीं है । जब कहीं कोई गलत चीज होती दिखाई दे और हम उसे अन्य तरीकेसे सुधारने में असमर्थ हो जायें तो उसकी किसी-न-किसी ढंगकी अवज्ञा करना मानवका अधिकार और कर्त्तव्य है । ऐसे मामलोंमें लोग ज्यादातर हिंसात्मक अवज्ञाका सहारा लेते हैं। इसे मैं हर परिस्थितिमें गलत समझता हूँ। मैंने पिछले १२ वर्षोंमें निरन्तर प्रयत्न किया है कि सुधार करानेके उपायकी तरह हिंसात्मक अवज्ञाके स्थानपर सविनय अवज्ञाका तरीका अपनाया जाये । और यदि यह सिद्धान्त, पर्याप्त रूपसे जनतामें रूढ़ हो जाता तो किसी भी हालतमें, जनता द्वारा हिंसा कदापि नहीं होती । सत्याग्रहके प्रादुर्भाव के कारण ही दंगे कुछ स्थानोंतक ही सीमित रहे और इससे कानून और अनुशासनको बनाये रखने में बहुत सहयोग मिला ।

मैं विनम्रतापूर्वक आपको यह इतमीनान दिला देना चाहता हूँ कि जबतक रौलट कानून रद नहीं होता और मुस्लिम भावनाओंको सन्तुष्ट नहीं किया जाता, तबतक