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पत्र : फूलचन्द शाहको

आशा है कि श्रीमती देवधरका स्वास्थ्य पहलेसे अच्छा होगा ।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

[ अंग्रेजीसे]
महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे ।
सौजन्य : नारायण देसाई

१२. पत्र : फूलचन्द शाहको

[ नडियाद ]
अगस्त ९, १९१८

तुमने जो राय दी है उसकी मुझे सचमुच जरूरत थी । उसमें तुमने इतना समय लिया, यह भी ठीक नहीं हुआ । अधिकांशतया तुम्हारा कहना ठीक है । यदि मैं ऐसे इस आश्रमकी स्थापना न करता तो कुछ भी न होता । उसमें अच्छे लोग शामिल हों, इस बातका मुझे लोभ रहा है । किन्तु अच्छे लोग भी दोष रहित नहीं हैं, यह आश्रम में हुई भूलोंसे सिद्ध हो जाता है । और ये भूलें आश्रमकी अपूर्णताकी साक्षी हैं। अगर मगनलाल[१] न होता, तो आश्रमकी स्थापना न होती । मगनलालके दोष तो मुझमें विद्यमान दोषोंके परिचायक हैं। में स्वयं नौसिखुआ हूँ, यह बात मैंने सोच-समझकर ही कही थी। आश्रमकी प्रवृत्तियोंसे मेरा मन बहलता है और वे मेरे लिए प्रयोग रूप हैं । प्रयोग टूट-फूट तो होती ही है । उनमें से मूल वस्तु कभी-न-कभी अवश्य प्राप्त होगी; किन्तु वह मिलेगी ढूँढ़नेवालेको हो । यदि तुम्हारे - जैसे लोग निरन्तर प्राणप्रद वायु [ऑक्सिजन ] का काम करते रहेंगे, तभी अपान वायु [ कार्बोनिक एसिड गैस ] को दूर किया जा सकेगा । अपान वायु तो हमेशा बनती ही रहेगी; लेकिन प्राणप्रद वायु उसे सदा शुद्ध करेगी। जैसा पिण्डमें है, वैसा ही ब्रह्मांडमें है । तुमने जो विचार मेरे सम्मुख रखे हैं, यदि उन्हें तुम मगनलाल और शिक्षकोंके सामने प्रकट करोगे तो बात बन जायेगी । मेरी यह इच्छा है कि तुम कायर न बनो। अपनी टीकासे यदि तुम सशक्त बनो और अशुद्धि दूर करनेके लिए कटिबद्ध हो जाओ, तो वह टीका बहुत फलदायक सिद्ध हो सकती है। अपनी इस टीकासे तुम्हें निराश नहीं होना चाहिए।

अब हमें पुस्तकालय नहीं बनवाना है । पाठशालाके भवन-निर्माणमें [ अभी ] देर है। मेरी इच्छा छात्रालय बनवाकर रुक जानेकी है। हम अपने रहनेकी गुंजाइशके विचारसे बुनाई घरमें ही और जगह बनवा लेंगे ।

मैं देखता हूँ कि शिक्षकोंपर खर्च किये बिना बिलकुल [ काम ] नहीं चल सकता । नये शिक्षक तो इकट्ठे नहीं करने हैं । ऐसा जान पड़ता है कि एक-दो और चाहिए ।


  1. मगनलाल गांधी (१८८३-१९२८ ); गांधीजीके चचेरे भाई खुशालचन्द गांधीके द्वितीय पुत्र,एक समय फीनिक्स आश्रम और बादमें साबरमती आश्रमके व्यवस्थापक रहे ।

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