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बुनाई और खेतीका काम इसलिए आरम्भ किया गया है क्योंकि हमें रचनात्मक कार्य करना था। जमीन ज्यादा ले ली गई, इसको मुझे कोई चिन्ता नहीं, मुझे तो, हमारा बुनाईका कार्यक्रम जिस ढंगसे चल रहा है, वह अखरता है । उसका हिसाब रोशनीकी तरह स्पष्ट होना चाहिए। उसकी देखरेख पूरी तरह होनी ही चाहिए और इसी कारण मगनलालको [ निरीक्षणके लिए ] बाहर भेजा गया है।
हमें धोतियाँ और साड़ियाँ भी जरूर बनवानी पड़ेंगी। इनकी जरूरत है । जो वर्ग इन्हें खरीदता है, उसमें गरीब लोग भी हैं। दूसरोंसे सौन्दर्य-दृष्टिका सर्वथा त्याग कराना सम्भव नहीं है। खादीको हमें भूलना नहीं है । हमारी आकांक्षा तो यह है कि हम खादीके प्रत्येक बुनकरको अपने हाथमें ले लें । इस प्रयासमें कुछ रुपया भी जरूर खर्च होगा।
मैंने तुम्हें यह बिखरा-बिखरासा पत्र लिखा है । तुमने एक पक्ष दिया है, और मैंने जैसा होना चाहिए, वैसा, दूसरा पक्ष दिया है। ठीक दोनों ही हैं । गुणोंके पलड़को एक ही चरित्रवान् पुरुष भारी बना सकता है। मैं चाहता हूँ कि तुम चरित्रबलका वैसा विकास करो और उसके अनुसार चलो । जहाँ हमें भूल नजर आये, वहाँ हमें उसे सुधारना चाहिए। जो काम हमसे न हो सके, उसे जरूर समेट लेना चाहिए। ऐसा मैंने दक्षिण आफ्रिकामें किया, चम्पारन में किया और यहाँ भी यदि हमें यह कार्य ठीक जान पड़ा, तो हम करेंगे । इतना लिख डाला; फिर भी करनेके लिए तो अभी बहुत बातें रह गई हैं।
मोहनदासके वन्देमातरम्
- [ गुजरातीसे ]
- महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ४
१३. पत्र : एक मित्रको[१]
आप मेरी पुस्तक[३] फिर पढ़ लेंगे, तो बहुतसे प्रश्नोंका उत्तर उसमें से ही मिल जायेगा, जैसा कि कौनसे फल खाना ।
तेल आदिका प्रयोग मुश्किल बात है । मेरा अनुभव ऐसा है कि आधा औंससे ज्यादा नहिं खाना चाहिए। औलिव आइल [ जैतूनका तेल ] इस मुल्कमें नहीं पा सकते । इसके एवजमें तिलका तेल ठीक है, परन्तु औलिवके जैसा केवल निर्दोष नहि है । खजूर और मूंगफली कर्कश है ही, परन्तु उन चीजोंको ही खुराक बनानेसे उनकी ठीक बरदास