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३४१. पत्र : जफरुल्मुल्क अलवीको[१]

[ जून १५, १९१९ के बाद ]

आपके १५ तारीखके पत्रके लिए धन्यवाद । कृपया सैयद फजलुल्रहमानकी सजाके विरुद्ध की गई अपीलकी कार्रवाइयोंकी खबरें मुझे अवश्य देते रहें।

आपने लखनऊकी जो तसवीर प्रस्तुत की है वह भारतके लगभग अन्य सभी भागों के बारेमें मिलनेवाली तसवीर जैसी है; लेकिन मैं इससे निराश नहीं होता, क्योंकि अब हमें परिस्थितिका सही अन्दाज हो गया है। यदि आप मुझसे यह कहना चाहते हैं कि वहाँ आपको अकेले ही सामाजिक और राजनैतिक मलबा हटाना पड़ रहा है तो आप बम्बई चले आइये और यहाँ जिस रचनात्मक कार्यक्रमकी तैयारी हो रही है उसमें भाग लीजिए । रमजान शीघ्र ही समाप्त होनेवाला है और मैं समझता हूँ कि उसके बाद आप आसानीसे लखनऊके बाहर जा सकेंगे ।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

[ पुनश्च : ]

आप जो साहित्य चाहते हैं उसे आपके पास भेजनेकी व्यवस्था करा दूँगा । क्या आपको 'यंग इंडिया' मिलता है ?

[ अंग्रेजीसे ]

बॉम्बे सीक्रेट ऐब्स्ट्रैक्ट्स, १९१९, पृष्ठ ६०१-२ ।
सौजन्य : महाराष्ट्र स्टेट कमेटी फॉर द हिस्ट्री ऑफ फ्रीडम मूवमेंट इन इंडिया


३४२. स्वदेशी व्रत[२]

सोमवार, जून १६, १९१९

हमने इतने दिनोंतक इस पर्चेका प्रकाशन जानबूझकर स्थगित कर रखा था । कारण यह था कि जो व्यक्ति शपथपर हस्ताक्षर करनेका विचार रखते थे हम उनके लिए, शपथका और व्यापक प्रचार करनेके पूर्व, कपड़ा मुहैया करनेकी कोई व्यवस्था करना आवश्यक समझते थे ।

श्री नारणजी पुरुषोत्तमने यहाँके स्वदेशी कोआपरेटिव स्टोर्सके भूतपूर्व व्यवस्थापक श्री विट्ठलदास जेराजाणीका सहयोग प्राप्त कर लिया है । नारणजीने अपनी निजी पूँजीसे एक शुद्ध स्वदेशी वस्त्र-भण्डार खोलना निश्चित किया है। इस भण्डारका उद्घाटन-

  1. सम्पादक, अल्नज़ीर ।
  2. यह दूसरा पत्रक था । पहले पत्रकके लिए देखिए " स्वदेशी व्रत ", १३-५-१९१९