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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

समारोह अगले बुधवारको होगा। यहाँसे कोई भी व्यक्ति देशी रुई, ऊन या रेशमके कते हुए सूतसे बुना शुद्ध स्वदेशी कपड़ा खरीद सकेगा। सर्वश्री नारणदास और जेराजाणीने शपथ ली है कि वे लागतपर ५ प्रतिशतसे अधिक मुनाफा नहीं लेंगे । वस्तुएँ निश्चित किये हुए दामोंपर ही बेची जाया करेंगी। इन सज्जनोंने यह भी शपथ ली है कि हाथके कते सूतसे हाथ-करघेपर बुने कपड़ेपर मुनाफेके रूपमें कुछ भी न लिया जायेगा ।

हमारी शपथकी व्याख्याके अन्तर्गत आनेवाला वह कपड़ा केवल जिसे शुद्ध स्वदेशी कहा जा सकता है, और जो अनेक शपथ लेनेवालोंको पर्याप्त मात्रामें अभीतक सुलभ नहीं था, इस भण्डारमें अगले बृहस्पतिवारसे बिकने लगेगा। चूंकि यह भण्डार केवल देशप्रेमको भावनासे प्रेरित होकर- न कि व्यापारिक दृष्टिसे-चलाया जानेवाला है, इसलिए उस कपड़ेको छोड़कर जो शपथ सं० १ और सं० २ के लिए जरूरी है, यहाँ दूसरा कोई कपड़ा नहीं बेचा जायेगा । इसी पद्धतिके अनुसार चलाई जानेवाली दुकानोंसे तथा उन दुकानोंके प्रति जनताके आर्थिक सहयोगसे ही स्वदेशीकी ठोस उन्नति सम्भव है। हम आशा करते हैं कि अन्य उदारमना व्यापारी श्री नारणजी पुरुषोत्तमकी तरह भण्डार खोलेंगे और स्वदेशीकी शपथ लेनेवालोंके मार्ग में सुविधाएँ प्रस्तुत करेंगे।

परन्तु यह बात अच्छी तरह याद रखनी चाहिए कि स्वदेशीके उद्देश्योंकी पूर्ति स्वदेशी-भण्डारोंके खोलनेसे ही कभी पूरी न होगी । स्वदेशी प्रचारका एक बड़ा मकसद यह है कि देशका धन देशके बाहर जानेसे रोका जाये। और यह सिर्फ तभी सम्भव होगा जब विदेशी कपड़ेका आयात बन्द हो और देशमें अधिक कपड़ेका उत्पादन किया जाये । इस सम्बन्धमें जो बात ध्यान रखने योग्य है वह यह नहीं कि देशमें तैयार किया गया स्वदेशी कपड़ा खरीददारोंके अभावमें बिना बिके पड़ा रह जाता है; तथ्य तो यह है कि हम अपनी जरूरतें पूरी करने भरका कपड़ा तैयार ही नहीं कर पाते। इसलिए स्वदेशीकी शपथ लेनेवाले प्रत्येक नर-नारीको अपने सामने एक उद्देश्य रखना चाहिए और वह यह कि शपथ लेनेवाला व्यक्ति अपनी आवश्यकता भरका कपड़ा स्वयं तैयार कर लिया करे अथवा अन्य किसी व्यक्तिसे तैयार करा लिया करे। यदि लाखों पुरुष एवं स्त्रियाँ ऐसा करने लगें तो हमारे देशसे बाहर जानेवाली बहुत-सी रकम देशमें ही रह जाये और हमारे गरीब लोगोंको कपड़ेका जो बहुत अधिक मूल्य चुकाना पड़ता है, वह भी बच जाये । इन बातोंको ध्यान में रखते हुए यह स्पष्ट है कि वह व्यक्ति जो अधिक स्वदेशी कपड़ेका उत्पादन करता है या करनेमें मदद देता है, स्वदेशीकी अधिक सहायता करता है। बनिस्बत उस व्यक्तिके जो स्वदेशी कपड़ेका इस्तेमाल करके ही सन्तुष्ट हो जाता है ।

देशमें कपड़ेका उत्पादन कैसे बढ़ाया जा सकता है अब हम इसपर विचार कर लें। इसके ३ तरीके हैं : (१) कारखाने खोलकर, (२) विदेशी सूत खरीदकर और उसे करघोंपर बुनकर तथा (३) खुदके कते हुए या अपने ही देशमें अन्य किसी व्यक्तिसे कतवाये गये सूतसे कपड़ा बुनकर या दूसरेसे बुनवाकर ।

मशीन के बने कपड़ोंके विरुद्ध मेरे क्या विचार हैं उसकी बात छोड़ दें तो भी यह बात विचारणीय है कि जितनी जल्दी हम चाहें उतनी जल्दी मिलें खोलना हमारे लिए आसान नहीं है । मिलके लिए इमारतें बनानेमें, बाहरसे मशीनें मँगवानेमें और मजदूर