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स्वदेशी व्रत

मुहैया करनेमें कुछ समय जरूर लगता है । इसलिए कुछ देरके लिए यह मानकर भी कि पूंजी पानेमें कोई कठिनाई नहीं होगी, नई मिलोंको खोलकर भी अपने कपड़ेका भण्डार बढ़ा सकना हमारे लिए सम्भव नहीं है।

निःसन्देह बाहरसे सूत मँगवाकर कपड़ा बुनना सम्भव है और दूसरी स्वदेशी शपथ इसी विचारसे रखी गई है कि विदेशी सूतसे देशमें ही बुने कपड़ेका इस्तेमाल करना और इस तरह कमसे-कम कुछ धन देशसे बाहर न जाने देना । यह स्वदेशी कपड़ा बिलकुल ही न इस्तेमाल किये जानेकी अपेक्षा कहीं ज्यादा अच्छा है ।

परन्तु जितना ही ज्यादा विचार करता हूँ मुझे इसमें उतने ही अधिक खतरे नजर आते हैं। लाखों आदमियोंकी जरूरतको पूरा करनेके लिए पर्याप्त कपड़ा तैयार करनेके निमित्त हम यदि तदनुसार विदेशी सूतकी माँग करेंगे तो विदेशी सूतके दाम बहुत अधिक बढ़ जानेकी सम्भावना है; यहाँतक कि दामोंकी वह बढ़ोतरी उस मजदूरीके बराबर पहुँच जायेगी जो हमें यहाँके कारीगरोंको देनी पड़ती है। इसका अर्थ यह होगा कि हम मुंहके बल गिरनेके लिए ही आगे बढ़े थे । इसलिए यदि हम इससे बचनेका कोई रास्ता निकाल सकें तो हमें विदेशी सूतका मुहताज न रहना पड़े ।

यह हमें तीसरे रास्तेपर ला खड़ा करता है अर्थात् सूत यहीं कतवाया जाये और उसे करघोंपर बनवाया जाये। यह राजमार्ग है और हमारे लक्ष्य तक पहुँचा देनेवाला सबसे अधिक विश्वसनीय मार्ग है। यदि लोग यह रास्ता अपना लें तो उद्देश्यकी प्राप्ति यथासम्भव कमसे कम परिश्रमसे और थोड़ेसे-थोड़े समयमें हो जायेगी। इससे हजारों लोगोंको एक स्वतन्त्र व्यवसाय भी मिल जायेगा । और लाखों गरीब औरतों और विधवाओंके लिए जीविकोपार्जनका एक ऐसा साधन निकल आयेगा जिससे वे घर बैठे कमाई कर लिया करेंगी। इस प्रयोगके लिए कोई बहुत बड़ी पूँजीकी जरूरत नहीं है, परन्तु इसकी सफलताके लिए सदा दो चीजोंकी जरूरत अवश्य होगी । अव्वल तो एक निश्चित संख्या में स्वयंसेवकोंकी । यह जरूरी नहीं कि वे उच्च-शिक्षा प्राप्त या बहुत ही बुद्धिमान हों । उनमें ईमानदारी और अध्यवसायका होना अनिवार्य होगा । शिक्षा और बुद्धि इच्छा करते ही सुलभ नहीं हो सकती, परन्तु यदि कोई ईमानदारी और अध्यवसाय, इन गुणोंको अर्जित करनेकी ठान ले तो वह उन्हें पा सकता है । स्वयंसेवक दो तरहसे उपयोगी हो सकते हैं : (१) वे सूत कातना और कपड़ा बुनना सीख सकते हैं। यदि दोनों सम्भव न हों तो सूत कातना या बुनना - दोमें से एक ही - सीख सकते हैं तथा अपनी मेहनतके कुछ घंटे देशको अर्पित कर सकते हैं (२) या वे ऐसे लोगोंको ढूंढ निकालें जो कातना और बुनना जानते हों और उनको जनताके बीच लाकर बिठा दें। यदि ऐसे अनेक स्वयंसेवक आगे आयें तो हम बहुत ही थोड़े समयमें हजारों रुपये मूल्यका कपड़ा तैयार कर लेंगे ।

परन्तु स्वयंसेवकोंसे भी ज्यादा महत्त्वकी चीज है विशुद्ध देश-प्रेम और उस देश- प्रेमके तकाजेके रूपमें कुछ आरामदेह चीजोंका त्याग । निःसन्देह कातनेकी कलाको उसके मूल स्तरपर लाया जा सके और बढ़िया मलमल बनाने योग्य बारीक सूत तैयार किया जा सके, इसके लिए बहुत समय लगेगा। इस वक्त तो प्रारम्भ करनेके लिए ही अनेक स्त्री- पुरुष कातना सीख सकते हैं। अच्छा सूत कातना तो अभ्यास और सावधानीसे किये गये प्रयत्नपर निर्भर है। इस बीच तो लोगों को हाथसे कते सूतसे तैयार किया गया जैसा भी

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