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३४४. भाषण : बम्बई में स्वदेशीके सम्बन्धमें [१]

जून १७, १९१९

मैं स्वदेशी के सम्बन्धमें जिन विचारोंको यदा-कदा १९०० में लोगोंके सम्मुख रखता रहता था, वे अब भारतमें रहते हुए जो अनुभव हुआ है उससे पुष्ट हो गये हैं। जबतक हम शुद्ध व्रतका पालन नहीं करेंगे तबतक हम स्वराज्य प्राप्त नहीं कर सकेंगे। जिन्होंने भारतका इतिहास पढ़ा है उन्हें तुरन्त याद आ जायेगा कि भारतमें डच, फ्रांसीसी और अंग्रेज लोग व्यापार करने के उद्देश्यसे ही आये थे । उस समय हमारे पास नौसेना नहीं थी; परन्तु व्यापारियोंका काफिला तो था ही। हमारी धर्मवृत्तिसे यह सिद्ध होता है कि भारतीयोंने अपने व्यापारकी रक्षा अपने कला-कौशलसे ही की थी। उन दिनों भारतमें जितना महीन कपड़ा बनता था, उतना महीन कपड़ा दूसरे देशोंमें नहीं बनता था । और उसके कारण ही विदेशी व्यापारी यहाँ आते थे। पहले यहाँ चिकनका काम जितना बढ़िया और कलापूर्ण होता था उतना अन्य किसी देशमें नहीं होता था । जैसे-जैसे नवीन खोजें होती जाती हैं वैसे-वैसे यूरोपीय विद्वान् इस बातकी साक्षी देते हैं कि जिस मार्गसे हमारा व्यापार होता था उसी मार्गसे हमारे शास्त्र और धर्मशास्त्र भी [विदेशोंमें] गये। तीनों देशोंके व्यापारियोंकी आँखें इसपर पड़ीं, इसीलिए वे भारतसे अपने जहाजोंमें अनोखी अनोखी चीजें भरकर अपने देशों में ले गये । उस समय भारतमें ऐसी-ऐसी अनोखी वस्तुएँ थीं कि उन्हें उन वस्तुओंको जहाजोंमें भरकर ले जानेकी आवश्यकता जान पड़ी। इनके अतिरिक्त वे भारत से मसाले और वैसे ही जड़ी-बूटियाँ भी अपने देशोंको ले जाते थे। जो भारत ऐसा वैभव-सम्पन्न और व्यापारमें उन्नत देश समझा जाता था, उसी भारतकी आज ऐसी हालत हो गई है कि उसे जिन-जिन चीजोंकी जरूरत होती है, वे उसे बाहरसे मँगानी पड़ती हैं। ऐसी बुरी हालत किसी दूसरे देशकी न होगी ।

इस अधोगतिका मुख्य कारण मुझे तो लगता है कि जो स्वदेशी वस्तुओंको भूल बैठे हैं वह है । और यदि आप भी इसपर विचार करेंगे तो आपको भी यही जान पड़ेगा; क्योंकि संसारमें कोई भी ऐसा देश नहीं है जो स्वदेशी वस्तुओंका त्याग करके उन्नति कर सका हो । इंग्लैंडमें अबाध व्यापारको शुरू हुए अभी सैकड़ों वर्ष नहीं हुए हैं, फिर भी आज हमारी जो स्थिति है उस विषम स्थितिमें उसने कभी भी अपनेको नहीं पड़ने दिया है । मुझे आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और दक्षिण आफ्रिकाका अनुभव है। इन देशोंके लोग स्वदेशी वस्तुओंका पूरा उपयोग करते हैं और आयात की गई वस्तुओंपर मनमाना कर लगा सकते हैं, क्योंकि उनको विदेशी चीजोंपर निर्भर रहनेकी जरूरत नहीं होती । हमारे देशके लोगोंने अपने राज्यको भी स्वदेशीका त्याग करके खोया है। मुगल बादशाहोंका

 
  1. गांधीजीको अध्यक्षतामें यह सभा कारनाक बन्दरके समीप हुई थी।