पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 15.pdf/४१८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३८८
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

राज्य एक तरहसे विदेशी राज्य माना जाता है; किन्तु जैसी दुर्दशा भारतकी आज है वैसी मुगल बादशाहोंके जमाने में कभी नहीं रही। इसका कारण यह है कि उस समय भारतका अपना व्यापार और उद्योग था तथा मुगल बादशाह भी अपने सुखोपभोगके लिए जिन-जिन साधनों का उपयोग करते थे उनका निर्माण हमारे देशके कारीगर ही करते थे । जिससे इस देशका धन इस देशमें ही रहता था । हम ताजमहल और कुतुबमीनार जैसी भव्य पुरानी इमारतें देखते हैं। वे कलाके नमूने हैं । उनको देखकर हमें अपने गौरवकी याद आये बिना नहीं रहेगी। जब हम स्वदेशी धर्मका पूरी तरहसे पालन करेंगे तब ब्रिटिश राज्य भी विदेशी न रहकर स्वदेशी हो जायेगा । जब भारतके लोग कोई विदेशी माल बाहरसे नहीं मँगायेंगे तब हमारा और दूसरे देशोंके लोगोंका सम्बन्ध स्वार्थका सम्बन्ध न रह जायेगा; बल्कि परमार्थका हो जायेगा । यदि दुनियाके देशोंका कल्याण एक परिवारके रूपमें रहनेसे होता हो तो ही अंग्रेज लोग हमारे साथ वैसा व्यवहार कर सकते हैं। हम तो अपने स्वदेशी धर्मका पालन भी नहीं कर सकते तो फिर अंग्रेजोंसे बराबरी कैसे कर सकते हैं ? स्वदेशी हमारा मुख्य धर्म है। इसके बिना भारतकी उन्नतिकी आकांक्षा आकाश-कुसुमवत् है ।

जब बंगालमें स्वदेशी धर्मका प्रचार हुआ तब बंगालके लोग उसके लिए तैयार न थे । व्यापारी भी तैयार न थे। उस समय बंगालके नेताओंने स्वदेशी वस्तुओंके प्रचारका काम अपने हाथोंमें लिया और फिर छोड़ दिया, क्योंकि उन्होंने बहुत बड़ा कदम उठा लिया था, इसलिए वे सब कुछ खो बैठे। हम २०० वर्षोंसे जिन वस्तुओंका त्याग कर चुके हैं उन्हें अब हमें फिरसे ग्रहण करना चाहिए। यदि हम समस्त स्वदेशी वस्तुओंके व्रतका पालन एक साथ शुरू कर देंगे तो उसका अर्थ यही होगा कि हम किसी एक भी स्वदेशी वस्तुका उपयोग नहीं कर पायेंगे। मैं लोगोंके सम्मुख ऐसी चीज रख रहा हूँ जिसे वे पचा सकते हैं और उसका पालन कर सकते हैं । यदि हम अपनी पोशाक भी स्वदेशी ही रखें तो कपड़के लिए जो ७ करोड़ रुपया विदेशोंको जाता है, उसे हम बाहर जानेसे रोक सकते हैं। यह कोई छोटी-मोटी बात नहीं है।

शुद्धतम स्वदेशी व्रत तो यह है कि हम अपनी पत्नियों, बहनों और बच्चोंके हाथसे कते सुतका कपड़ा पहनें।

मिलका कपड़ा भी शुद्ध स्वदेशी नहीं कहा जा सकता, क्योंकि इसमें काममें लाये जानेवाले सूतको विदेशोंमें कीमती मशीनोंपर रगड़ा-माँजा जाता है और इस प्रकार वह विदेशियोंके कौशलका प्रमाण है। इसका अर्थ यह हुआ कि हमें [ मिलके कपड़के लिए ] पूर्णतः विदेशियोंपर ही निर्भर रहना पड़ता है ।

गुरुवार के दिन आप नारणदासकी दुकानपर स्वदेशी कपड़ेका भण्डार देख सकेंगे जो शुद्ध स्वदेशी व्रतका पालन करनेवालोंको उनकी जरूरतका कपड़ा मुहैया करेगा । हम अभी तक आलसी बने हुए हैं। हमें अपने देशसे प्रेम नहीं है । इसी कारण हमारी ऐसी दुर्दशा हुई है । हमारे देशमें एक समय ऐसे उत्कृष्ट यन्त्रोंसे काम किया जाता था जिन्हें एक सामान्य बढ़ई भी एक दिनमें तैयार कर सकता है ।