पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 15.pdf/४१९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३८९
पत्र : एस० आर० हिगनेलको

भाई नारणदास और विट्ठलदास शुद्ध स्वदेशी भण्डारको चलायेंगे और उसका समस्त देश में प्रचार करेंगे। मुझे उम्मीद है कि आप इस शुद्ध स्वदेशी भण्डारसे लाभ उठायेंगे ।

[ गुजरातीसे ]
गुजराती, २२-६-१९१९
 

३४५. पत्र : एस० आर० हिगनेलको

लैबर्नम रोड
बम्बई
जून १८, १९१९

प्रिय श्री हिगनेल,

सम्भवतः इस पत्रसे परमश्रेष्ठको पीड़ा पहुँचेगी । परन्तु परमश्रेष्ठको खेदपूर्वक यह सूचित करना मेरा कर्त्तव्य है कि यदि परिस्थितियाँ मेरी योजना न बदल दें तो मेरा विचार आगामी जुलाईमें फिरसे सविनय अवज्ञा शुरू करनेका है ।

पिछले ढाई महीनोंके दुःखद अनुभवोंके परिणामस्वरूप यह स्पष्ट हो गया है कि सत्याग्रहके सिवा, सविनय अवज्ञा जिसका अभिन्न अंग है, और कोई चीज भारतको बोल- शेविज्म और उससे भी बदतर किसी दुर्भाग्यसे बचा नहीं सकती । सम्भव है कि ऊपरी तौरपर देखनेवालेको इसके विपरीत लक्षण दिखाई दें, फिर भी केवल सत्याग्रह ही एक ऐसा साधन है जो अंग्रेजों और भारतीयोंके सम्बन्ध सुधार सकता है। मैं चाहूँगा कि परमश्रेष्ठ मेरी तरह इस बातपर विश्वास करें कि अप्रैल के दूसरे सप्ताह में अंग्रेजोंके विरुद्ध भावनाका जो प्रदर्शन हुआ था उसका कारण सत्याग्रहका प्रादुर्भाव नहीं था- सत्याग्रहका उद्देश्य तो यह है कि वह अन्य बातोंके साथ-साथ साम्राज्यके दो सदस्योंके बीच मनोमालिन्यको दूर कर दे । उस प्रदर्शनके कारण तो पहलेसे वर्तमान थे । परमश्रेष्ठ इस बातपर भी विश्वास करें (और यह अधिक महत्त्वपूर्ण बात है) कि उस उच्छृंखल कृत्यके इस बड़े महाद्वीपके कुछ हिस्सोंमें ही सीमित रहनेका कारण भी यह था कि सत्याग्रहका प्रादुर्भाव हो चुका था और वह उस संकटपूर्ण अवधि में कुशलतापूर्वक बिना शोरगुल मचाये अपना प्रभाव डाल रहा था । मैं यह माननेसे इनकार नहीं करूँगा कि भारतके अन्य भागों में शान्ति बनाये रखने में फौजी तैयारियोंका भी कुछ हाथ रहा; परन्तु मेरा कथन यह है कि अपेक्षाकृत सत्याग्रहको इसका अधिक श्रेय जाता है ।

जो भी हो, चूँकि सत्याग्रह और उसके प्रभावके बारेमें मेरी ऐसी धारणा है इसलिए अब सविनय अवज्ञाको अधिक दिनों तक स्थगित रखना मेरे लिए उचित नहीं होगा । क्या ही अच्छा होता कि वाइसराय महोदयको मैं इतना समझा पाता कि वे रौलट कानूनके बारेमें मुझसे सहमत हो जाते। यह एक ऐसा कानून है, जिसे गुण-दोषोंके बावजूद माचं तथा अप्रैल के महीनोंमें प्रतिकूल जनमत प्रदर्शनके बाद नहीं रहना चाहिए था । निःसन्देह