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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

तकुओं और करघोंसे निकलनेवाला कर्कश स्वर । उन्होंने दुःखसे बताया कि भारतमें ५६,००,००० साधु हैं जो केवल भीख माँगकर अपना पेट भर रहे हैं। आपका यह स्पष्ट कर्त्तव्य है कि आप इन साधुओंको आलस्यपूर्ण जीवनसे बाहर खींचकर उन्हें कातने और बुननेमें प्रवृत्त करें। इन साधुओंके अलावा अनेकों विधवाएँ हैं जिनका अधिकांश समय मंदिरोंमें और व्यर्थके पूजापाठमें जाता है। मैं इनसे और अमीर परिवारोंकी अन्य महिलाओंसे जिनके पास कोई काम नहीं रहता, हार्दिक प्रार्थना करता हूँ कि वे कातना- बुनना शुरू करके अपने श्रमके कुछ घंटे देशको अर्पित किया करें।

उन्होंने यह भी कहा कि यह बतानेकी आवश्यकता नहीं है कि विदेशी कपड़ेसे स्वदेशी कपड़ा कहीं अधिक टिकाऊ होता है क्योंकि यह तो प्रत्येक व्यक्तिके अनुभव से आ ही रहा है ।

इसके बाद श्री गांधीने कहा कि श्रीमती रामीबाई कामदार तथा अन्य लोगोंसे कुछ सलाह और वार्तालाप करनेके अनन्तर मैंने एक तीसरी शपथ[१]तैयार की है। लोगोंके पास शपथ लेनेके पूर्व जो विलायती वस्त्र वे उन्हें पहनना जारी रख सकते हैं। यह मैंने कुछ महिलाओंकी हार्दिक इच्छाको ध्यानमें रखकर किया है और मुझे पक्का यकीन नहीं है कि इस शपथमें कोई खतरा नहीं है। उन्होंने इस बातपर जोर दिया कि जो लोग तीसरी शपथ लें, वे भी पहलीको ही अपना लक्ष्य मानें और अपने पासके विदेशी कपड़ोंको यथासम्भव शीघ्रतासे चाहे रोज-रोज इस्तेमाल में लाकर, समाप्त कर दें और तबतक भी महत्त्वपूर्ण रस्मी अवसरोंपर शुद्ध स्वदेशी कपड़े पहनें ।

श्री गांधीने श्रोताओंसे जोर देकर कहा कि वे व्यापार-सम्बन्धी नैतिकताका महत्त्व समझें ।

उन्होंने इस तथ्यपर विशेष जोर दिया कि जबतक बम्बई में सट्टेबाजी जारी रहेगी, तबतक स्वदेशीकी सफलताके मार्गमें अवश्य ही बहुत बड़ी बाधा पहुँचती रहेगी। उससे दृढ़तापूर्वक अलग रहनेका निश्चय कर लेनेका समय आ गया है । जापानके धनिकोंने अपने अधिकार और अपनी धन-दौलत अपने देशको अर्पित कर दिये थे । भारतके धनी लोग भी वैसा ही कर सकते हैं और इस प्रकार देशकी स्थायी सेवा कर सकते हैं। मानवता और ईमानदारी उनके जीवनके सिद्धान्त होने चाहिए और सच्ची देश-भक्तिको हो, जो एकमात्र प्रभावकारी प्रेरणाशक्ति है, पथ-प्रदर्शक समझना चाहिए । अन्तमें उन्होंने कहा कि स्वदेशी उन थोड़ी-सी बातोंमें से एक है जिसपर किसी तरहका कोई मतभेद नहीं है । उन्होंने आशा व्यक्त की कि वे सभी लोग जो किसी भी रूपमें देशके भाग्यके निर्माणसे सम्बन्धित हैं उसे अच्छी तरह समझ लेंगे और उसकी उन्नतिको दिशामें सक्रिय रूपसे कदम उठायेंगे, क्योंकि केवल स्वदेशी ही लोगोंको गरीबीसे छुटकारा दिला सकती है।

[ अंग्रेजीसे
यंग इंडिया, २१-६-१९१९
  1. देखिए “स्वदेशी सभाके नियम", १-७-१९१९ के पूर्व ।