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३४७. पत्र : दक्षिण आफ्रिकाकी एक महिला मित्रको

[ जून १८, १९१९ के बाद ][१]

घटनाचक्र जिस तीव्र गतिसे घूम रहा है उसे देखते हुए किसी आन्दोलनको ठीक- ठीक अंजाम दे सकना कठिन जान पड़ता है । संसारकी मौजूदा हालतको उत्पन्न करनेमें आर्थिक संकट, राजनैतिक दमन और विशेष रूपसे जनतामें आई हुई जागृतिका बहुत बड़ा हाथ है। भिन्न-भिन्न देशोंकी स्थितिका अध्ययन करनेपर पता चलता है कि आज संसारके प्रत्येक देशमें घोर अशांति छाई हुई है। अमेरिकामें वर्ग संघर्ष है, इंग्लैंडके मजदूरोंमें अशान्ति है, रूसमें बोल्शेविज्मका बोलबाला है और भारतमें दमन, अकाल इत्यादि कारणोंसे सर्वत्र हलचल मची है । इस समय पाश्चात्य देशोंको जिस परिस्थितिका सामना करना पड़ रहा है वह अनिवार्य थी; क्योंकि पाश्चात्य सभ्यता, जो पशुबलके सिद्धान्तको आधार बनाकर खड़ी है और जो उसीको अपना मार्गदर्शक मानकर पथ चुनती है, अन्ततोगत्वा पारस्परिक विनाशकी ओर ही ले जानेवाली वस्तु है । परन्तु भारतमें अब भी बाधाओंके बावजूद हमारी प्राचीन सभ्यताके उच्च सिद्धान्तोंका जन- साधारणपर गहरा प्रभाव बना हुआ है और यदि यह इष्ट है कि बोल्शेविज्मको, जो यूरोपमें बड़ी तेजीके साथ एकके-बाद-एक देशको अपने प्रभावके अन्तर्गत लेता चला आ रहा है, भारत में फैलने से सफलतापूर्वक रोका जाये और यदि उसके अनुकूल वातावरण पैदा होने की किचित् मात्र सम्भावनाको भी न पनपने दिया जाये तो यह आवश्यक है कि भारतके लोगोंको उनकी संस्कृति तथा सभ्यताकी विरासतका, जो कि एक शब्द में "सत्याग्रह" है, स्मरण कराया जाये । सत्याग्रहसे बढ़कर और कोई मंत्र अभीतक देखने में नहीं आया है ।

जनवरी, सन् १९१९ के अन्तिम सप्ताह में भारत सरकारने दो विधेयकोंका पाठ प्रकाशित किया। आज हम उन्हें रौलट विधेयकोंके नामसे जानते हैं। भारत सरकारके हाथमें महायुद्धके दौरान तथा युद्धकी समाप्तिके छः माह पश्चात् तक की अवधिके लिए पास किये गये भारत रक्षा कानून [ डिफेंस ऑफ इंडिया ऐक्ट ] के अन्तर्गत मनमाने अधिकार थे, वे ही मनमाने अधिकार इस अधिनियम द्वारा भारत सरकारने पुनः प्राप्त कर लिये हैं । परन्तु जो वस्तु युद्धके दिनोंमें बरदाश्त की जा सकती थी वह शान्ति कालमें सहन नहीं की जा सकती । युद्धकी समाप्तिपर तो सरकारको अपना पूरा ध्यान रचनात्मक कार्यकी ओर लगाना चाहिए न कि उसके स्थानपर शांति- व्यवस्थाके लिए जरूरी बताकर मनमाने तथा अमर्यादित अधिकारोंका आग्रह करना चाहिए। ऐसे समय जब कि स्वयं ब्रिटिश संसदने भारतके प्रशासन-तन्त्रके भारतीय-करणकी आवश्यकताका अनुभव कर लिया है और जब मॉण्टेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार-योजना

 
  1. जिस स्वदेशी स्टोरका उल्लेख इस पत्रके अंतिम अनुच्छेदमें भाषा है वह जून १८, १९१९ को खोला गया था ।